किसी ने कहा-भाई तुम तो कंजूस हो गये हैं। बड़ा खराब लगा, मेरी दरियादिली पर शक किया जा रहा है। लगा लिया, चैलेंज, कहा-चलो आज ही पाटीॆ दे देते हैं। लग गयी पांच सौ रुपये की चपत। लेकिन भैया, अब जब पेट पर लात मारने की कवायद तेज हो गयी है, तो खुद पर गवॆ महसूस होता है। मैं गवॆ से कह सकता हूं, मैं कंजूस हूं और कंजूस रहूंगा। अगर आपको आपत्ति है, तो आप मुझे खचॆ के लिए पैसे दे सकते हैं। उधर, अमेरिका में यानी धनपतियों के देश में कंबल ओढ़ कर घी पीनेवाले आज कल समुद्र का पानी पी रहे हैं। क्योंकि बंगला है, गाड़ी है और साथ में माता-पिता भी हैं, लेकिन खरीदने के लिए पैसा यानी नगद नहीं है। हम यहां यानी इंडियन मिडिल क्लास एक-एक पैसे बचा कर इंडियन बैंकों को मजबूत बनाकर मंदी को दूर धकेलने की कोशिश में हैं। थोड़े सफल भी हुए हैं। (लेकिन भैया, कंपनी सब तो मंदी की मार के नाम पर सबको धकिया रही है)।
मिडिल क्लास के पास इत्ता पैसा है कि अमेरिका को खरीद ले। मिडिल क्लास खुद को कंजूस मक्खीचूस कहने में गवॆ महसूस करता है। हम भी करते हैं। पैसा बचाना मेरा शगल था और रहेगा। अब ये मत पूछना-कित्ता पैसा है बेटा? अब आगे क्या बोलें-आपको तो कहेंगे, खूब पैसा बचाइये, पैसे लगाइये, इनवेस्ट करिये, खचॆ मत करिये।
वैसे ये कहावत बुरी नहीं है-उतना ही पांव फैलाइये, जितना लंबा चादर हो।
चादर को ज्याद तानोगे, तो फट जायेगी। तकलीफ किसे होगी, आपको। सोने के लिए फिर वही टाट मिलेगा। नींद नहीं आयेगी। नींद नहीं आयेगी, तो ब्लड प्रेशर और चिड़चिड़ापन। फिर ब्लाग भी नहीं लिख पाइयेगा। ब्लाग नहीं लिखियेगा, तो दिक्कत हमें होगी। क्योंकि ये जो नशा है.... अब क्या कहें।
Friday, December 19, 2008
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4 comments:
बढ़िया लिखा है. आभार. हमने नीचे बने फॉर्म पर लंबी चौड़ी टिप्पणी लिख छोडी. ये नये प्रकार का फॉर्म ब्लॉगगेर में नया है इस लिए ग़लती हो गयी.
bahut badhiya hai...lehmann brothers ki bajay bharat mein loha maann bandhu bank jyada majbut hai...
अच्छा है - बचत करने और अपनी चादर में रहना चाहिये। चाहे कोई मक्खी चूसने वाला कहे।
बहुत ही बढिया लिखा है.
हकीकत में ये हम मध्यम वर्गीय लोगों की बचत करने की आदत ही है,जिसके जरिये दाल-रोटी मिल रही है.
वर्ना अति आधुनिकता ओर इस अमरीकी संकट के चक्कर में पता नहीं कब के बर्तन बिक चुके होते.
खूब लिखें,अच्छा लिखें
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