आज एक पोस्ट पढ़ा आस्था पर। नास्तिक और आस्तिक होने के अंतरद्वंद्व के बीच फंसे मानव की गाथा। आस्था शब्द की क्या परिभाषा है? किसी पत्थर में भगवान के रूप को कब और क्यों पूजते हैं? या कोई उस निराकार रूप का क्यों पूजन करता या मानता है। काफी सारे सवाल हैं? कहते हैं कि आस्था से पत्थर भी पानी हो जाता है। इतनी कहानियां, इतने किस्से हैं कि पूरा संसार भर जाये। इन बहसों के बीच सत्य या शांति की तलाश में मनुष्य का मन शुरू से भटक रहा है।
अब हम सोचते हैं कि क्यों नहीं इस सवाल को साइंटिफिक पैमाने पर आंकड़ों से तौलें। वैसे ही जिस भगवान को आप पूजते हैं, वह आपकी मदद कर रहा है या नहीं कर रहा, इसे प्रमाणित करने के लिए भी शायद आंकड़ों की जरूरत होगी। लेकिन ये आंकड़े आप कहां से लायेंगे और किसे बतौर माध्यम उपयोग करेंगे।
क्योंकि ऐसे प्राणी को खोजना असंभव कायॆ है। कौन सामने आयेगा कि ईश्वर ने उसकी मदद की और इसके लिए पुख्ता प्रमाण कैसे जुटाया जायेगा? (इसे लेकर भी कई विवाद हैं)
कहते हैं कण-कण में ईश्वर है। हम सब चलायमान हैं और समय के हिसाब से कतॆव्यपालन कर रहे हैं। शायद ईश्वर के प्रति अनासक्ति दिखाकर क्या हम मनुष्य के रूप विवेकी होने का दंभ नहीं दिखा रहे। कहीं भी ईश्वर को जबरदस्ती मानने की बात नहीं की जाती है। इधर जब हमारे दिमाग की नसें मानवीय जाल के जंजाल में फंसकर थक जाती है, तो उसी असीम शक्ति के सहारे सुकून मिलता है। हम अपनी थकान उस महान शक्ति पर डाल सो जाते हैं। जब ताजगी वापस आती है, तो पीछे की स्थिति को भूलकर आस्तिक और नास्तिक होने के बहस को शुरू कर देते हैं।
दूसरी ओर संसार में जारी हिंसा और प्रतिहिंसा के बीच फिर अंतरद्वंद्व की स्थिति जन्म लेती है कि ईश्वर है या नहीं। अगर है, तो ये सांसारिक स्थिति क्यों है? उसकी तलाश में सारी जिंदगी बीत जाती है। इधर ईश्वर हमसे कभी कुछ चाहता नहीं और हम उससे सबकुछ चाहते हैं। जब उसने हमें जिंदगी दी, तो वही रास्ते भी बनायेगा।
देखना ये है कि इसे बतानेवाला कौन होगा? विरोधाभास या कंफ्यूजन की स्थिति को हमारे मन में भी है।
दो शब्दों में कहूं, तो हमारी आस्था ईश्वर में है। क्योंकि वह कभी हमें गलत रास्ता अख्तियार करने का संदेश नहीं देता। कभी हमें लालची होने का बहाना नहीं बनाने देता। वह दूसरों के प्रति दया रखने और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाता है। मेरे विचार से तो ईश्वर, भगवान ये वे सच्ची भावना हैं, जो इनडायरेक्टली या कहें प्रेरकस्वरूप हमारे जीवन की दिशा को नियंत्रित करते हैं।
इसलिए आस्था या अनास्था के सवालों से परे जरूरत अच्छे और बेहतर विचारों पर जोर देने की है, जिससे जीवन की गाड़ी पर सकारात्मक विचारोंवाले इंजन से खींची जाती रहे।
Thursday, January 8, 2009
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3 comments:
aastha aur anaastha par bahut sahi visleshan hai aapka...
भगवान ये वे सच्ची भावना हैं, जो इनडायरेक्टली या कहें प्रेरकस्वरूप हमारे जीवन की दिशा को नियंत्रित करते हैं।
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ओह, यह गपशप नहीं सीरियस और सुन्दर लेख है!
मुझे तो लगता है कि नास्तिक और आस्तिक में मनुष्यों का विभाजन ही एक बहुत बड़ी भ्रमपूर्ण धारणा है।
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