Tuesday, March 10, 2009

होली तो मनायेंगे, लेकिन गुलाल के साथ

होली की खुमारी चढ़ चुकी है। फागुन की दस्तक गुदगुदाती है। हर साल होली में एक हेडिंग जरूर पढ़ता हूं, महंगाई मार गयी होली। सोचता हूं कि वैसी होली कब होगी, जब सही मायने में सभी होली मनायेंगे। सिर्फ औपचारिकता निर्वाह के लिए होली नहीं खेलेंगे, बल्कि होली खेलेंगे सही मायने में सुखी होकर। क्योंकि हर किसी की जिंदगी में खुशियों की छपछपाहट होगी।

जानता हूं कि ऐसा संभव नहीं है। क्योंकि ऐसी हमारी प्रवृत्ति नहीं है। होली तो हर साल होती है, लेकिन जिस होली के लिए हमारा मन तरसता है, उस होली के लिए क्या हम कभी आगे बढ़ पायेंगे। बगल की गली के अंकल दस साल पहले बेटे के साथ आ धमकते थे, लेकिन आज बेटे की दूरी ने उन्हें अकेला कर दिया है। वह घर से नहीं निकलते। उन्हें कोई अपना नहीं लगता, क्योंकि उनका अपना तो दूर है। मंदी की मार ने तो और होली के उल्लास को कम किया। रंग में चेहरा छिपाकर हम अपनी उदासी एक दिन के लिए भुला तो देंगे, लेकिन दूसरे दिन उसी यथार्थ का सामना करना पड़ेगा, जिससे हम दूर होते जा रहे हैं।

एक एसएमएस आया है, होली खेंले लेकिन गुलाल के साथ, पानी बचायें। क्या हम ऐसा कर पायेंगे? मैंने तो सोच लिया है। वैसे पानी के साथ होली खेल सकते हैं, लेकिन ज्यादा पानी बरबाद कर नहीं, उचित मात्रा में पानी के साथ।

एक बार फिर से हैप्पी होली टू आल।

6 comments:

Alpana Verma said...

मंदी की मार ने तो और होली के उल्लास को कम किया। रंग में चेहरा छिपाकर हम अपनी उदासी एक दिन के लिए भुला तो देंगे-bahut sahi..

aap ki yah baat bhi sahi lagi..होली खेल सकते हैं-उचित मात्रा में पानी के साथ।

aap ko bhi Prabhat ji,holi ki shubhkamnayen.

Udan Tashtari said...

होली महापर्व की बहुत बहुत बधाई एवं मुबारक़बाद !!!

अविनाश वाचस्पति said...

होली पर रंगकामनायें स्‍वीकारें

होली खेलें नेट के पास

यही होली है अब खास

जो गया वो दोबारा ने नहीं होता

क्‍योंकि आवारा हो गया है

नेट का गांव ही हमारा हो गया है।

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत मुबारक हो होली।

Manish Kumar said...

माता पिता के पास होली में ना जा पाना खलता है। क्योंकि ये पर्व त्योहर ही हैं जो पारिवारिक बंधनों को और प्रगाढ बनाते हैं। आपको भी होली मुबारक !

prabhat gopal said...

holi ki sabko phir se hardik badhai

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