tag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post7832991912586071697..comments2023-10-08T03:55:25.020-07:00Comments on आइये करें गपशप: खुलापन, पश्चिमी देश और हमारा घटिया नजरियाprabhat gopalhttp://www.blogger.com/profile/04696566469140492610noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-77708883812041314382009-08-26T18:36:45.616-07:002009-08-26T18:36:45.616-07:00आपकी पहेली कुछ पंक्तिया अच्छी लगी
'सारे सवाल...आपकी पहेली कुछ पंक्तिया अच्छी लगी <br /><br />'सारे सवालों का जवाब बस ये ही एक जवाब है। खुलापन का मतलब सिर्फ शारीरिक संबंध बनाना या स्वच्छंदता नहीं होता। खुलापन का मतलब होता है, विचारों में खुलापन लाना। '<br /><br />खुलेपन या खुले विचारो का न परिवार न ही कपड़ो से कोई संबंध है| विचार तो आप की अंतरात्मा से आते है| बाहरी दिखावे से नही|Anitahttp://www.toshakishayari.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-45769799171347779462009-04-15T09:46:00.000-07:002009-04-15T09:46:00.000-07:00यहां जनसंख्या के हिसाब से आबादी तो बढेगी ही। दूसरी...यहां जनसंख्या के हिसाब से आबादी तो बढेगी ही। दूसरी बात यह है कि गर्म देशों में अधिक गर्मजोशी होती है। इसीलिए तो रूस और जर्मनी जैसे देशों को अधिक बच्चों की मां को पुरस्कृत किया जाता है!!चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-10370222939272320202009-04-15T04:08:00.000-07:002009-04-15T04:08:00.000-07:00यह सही है कि बड़ी संख्या में नौजवान पीढ़ी भारत और ची...यह सही है कि बड़ी संख्या में नौजवान पीढ़ी भारत और चीन का प्लस प्वाइण्ट है। <br />पर बड़ी संख्या में बच्चे सूदान और सोमालिया का भी प्लस प्वाइण्ट है?Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-53012275825617881102009-04-15T03:56:00.000-07:002009-04-15T03:56:00.000-07:00किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति सामान रूप से सम्...किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति सामान रूप से सम्मान्य है .न तो कोई संस्कृति हीनतर है और न ही श्रेष्ट.बात ऐसी है की जब हमारे यहाँ सभ्यता का विकास हो रहा था तो दूसरी जगह लोग घास नहीं छील रहे थे .<br />जब भी वेस्टर्न कल्चर की बात होती है तो हमारे मानसपटल पर सिर्फ अश्लील और अवज्ञाकारी भद्दे आचरण वाले लोगों का ही चित्र उभरता है .अपने मट्ठे को खट्टा न कहने वाले लोगों को ये बात समझना चाहिए की अच्छाई और बुराई हर सभ्यता में विद्यमान हो सकती हैं .सांस्कृतिक श्रेष्टता की लडाई लड़ने की बजाये क्यों नहीं हम एक दुसरे की संस्कृति से अच्छी चीज़ों को ग्रहण करें ?अभी भी हमारा देश जातीय ,नस्ली , धार्मिक और लिंग सम्बन्धी भेदभाव से मुक्त नहीं हुआ है. क्या हम पश्चिमी सभ्यता से वैसे खुलेपन को आयत नहीं कर सकते जो हमे कुप्रथाओं ,पुरातन रूढियों और अन्य अतिवादों की जकड से मुक्ति दिला दे .खुलेपन का मतलब खाली मिनिस्किर्ट और बिकनी का शारीरिक खुलापन नहीं बल्कि मर्यादित विचारों का खुलापन . हमारे देश में संसाधनों पर जनसँख्या का दबाव और असंतोष बढ़ता ही जा रहा है इसके बावजूद हम बच्चों को ऊपर वाले की देन बताकर लगातार आबादी बढाते जा रहे हैं.क्या हम पश्चिम से इस मामले में कुछ सीख सकते हैं?<br /><br /> दोपाया जंगली जानवर से आधुनिक मनुष्य बनने तक का सफ़र मनुष्य ने संयम के बल पर ही तय किया है क्यूंकि परिपक्वता के बाद देह्प्रदर्शन,शारीरिक सम्बन्ध , प्रजनन और गृहस्ती ही मनुष्यों के जीवन का मुख्य धेय्य हो जाए तो जानवरों और मनुष्य में अंतर क्या रह जायेगा?आजकल बढ़ती जा रही नग्नता का बच्चों पर खराब मनोवैज्ञानिक असर पड़ रहा है.मेरे विचार से परिधानों को अपनी सहजता के अनुसार जरूर पहनना चाहिए पर केवल नंगापन और देह प्रदर्शन नहीं होना चाहिए .अब हम संस्कृति के नाम पर ये कह कर किसी को बाध्य तो नहीं न कर सकते कि कोई धोती पहनकर सीमाओं की पहरेदारी करें ,कोई सारी पहनकर दौड़ लगाये या कोई बुरका पहनकर बैडमिन्टन खेले .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-8357250604383325032009-04-15T01:58:00.000-07:002009-04-15T01:58:00.000-07:00hamne bahas ko aage badhaya aur aapne bhi bhagidar...hamne bahas ko aage badhaya aur aapne bhi bhagidari ki. sabko thanks<br /><br /><br />aaiye ham sakaratmak samvad kar ek nayi parampara shuru kare.prabhat gopalhttps://www.blogger.com/profile/04696566469140492610noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-40488401554781333772009-04-15T01:13:00.000-07:002009-04-15T01:13:00.000-07:00अच्छी विचारणीय पोस्ट है।बधाई।अच्छी विचारणीय पोस्ट है।बधाई।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-54362041310078194602009-04-14T22:43:00.000-07:002009-04-14T22:43:00.000-07:00इसका एक बहुत बड़ा कारण अशिक्षा है ....ओर कुछ धर्मो...इसका एक बहुत बड़ा कारण अशिक्षा है ....ओर कुछ धर्मो में चली आ रही घिसी पिटी दकियानूसी सोच जो उस वक़्त किसी खास कारण से बनायीं गयी थी .डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-17556273222996213352009-04-14T20:38:00.000-07:002009-04-14T20:38:00.000-07:00हमने मिनी स्कर्ट, जींस और टॉप को ही आधुनिकता की पह...हमने मिनी स्कर्ट, जींस और टॉप को ही आधुनिकता की पहचान बना दी है। एक महिला कीआधुनिकता साड़ी में भी झलक सकती है। ये हम भी जानते हैं और आप भी। अब ये मत कहियेगा कि इतने ही उन्नत अगर आपके विचार हैं, तो आप धोती क्यों नहीं पहनते? <br /><br />yae likh kar aapne khud apni kahii har baat ko jhudlaa diya <br /><br />hamaarey yaahaan yahii samsyaa haen ki har baat jo khulaaepan sae sampbandhit hotee haen wo aakar <br />aurat / naari kae libaas par kahatam hotee haen<br /><br />kuch upar uthiyae apni is soch sae <br />kis ko kyaa pehnanaa haen yae uska samvaedhanik adhikar haen <br /><br />meri psot ka link daene kae liyae aabahrAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-68778454827213384942009-04-14T18:50:00.000-07:002009-04-14T18:50:00.000-07:00खाली खुले पन और वैचारिक परिवर्तन से भी काम नहीं चल...खाली खुले पन और वैचारिक परिवर्तन से भी काम नहीं चलने वाला। भौतिक परिवर्तन जीवनावश्यक पदार्थों का जन जन की पहुँच में आना भी जरूरी है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-4299820135084943662009-04-14T14:31:00.000-07:002009-04-14T14:31:00.000-07:00आपने अच्छा विश्लेषण किया है.आपने अच्छा विश्लेषण किया है.not neededhttps://www.blogger.com/profile/17780210127869685473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5335821158875365184.post-32852786918537468212009-04-14T14:02:00.000-07:002009-04-14T14:02:00.000-07:00आज पश्चिमी देशों के युवा जिम्मेदारियों से भाग रहे ...आज पश्चिमी देशों के युवा जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं, इसलिए परिवार या बच्चे की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते।<br /><br />अच्छाजी, पश्चिम में भी कोई मैकाले हुये थे क्या?Neeraj Rohillahttps://www.blogger.com/profile/09102995063546810043noreply@blogger.com