कल एक व्यक्ति ने कहा कि अन्ना की मासूमियत का इस्तेमाल हो रहा है. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तुम ताम पर उतर आए, तो होम मिनिस्टर चिदंबरम श्री अन्ना कह कर बात को आगे बढ़ा रहे थे. अन्ना के करप्शन के खिलाफ लड़ाई में जो जोश, जुनून दिख रहा है, उसमें कुछ अलग से बोलना खतरनाक है. वैसे बाबा रामदेव हों या अन्ना, इसमें श्री श्री रविशंकर का रोल क्यों महत्वपूर्ण हो जाता है, ये समझ में नहीं आता. श्री श्री बड़े गुरु हैं, लेकिन जब लड़ाई एकदम से पिक पर रहती है, तो इनकी अचानक से इंट्री कुछ गलत अंदेशा दे जाती है. पूरी बहस हट कर श्री श्री की मध्यस्थता पर आ जाती है.
पिछली बार भी यही हुआ, बाबा रामदेव ब्लैक मनी लाते-लाते व्यक्तिगत स्तर पर आरोप-प्रत्यारोप में उतर आए. यहां बात होनी चाहिए, दो पक्षों के बीच. बहस होनी चाहिए दो पक्षों के बीच, जो तर्क के सहारे एक-दूसरे का जवाब दें और उससे जो सामूहिक निष्कर्ष निकले, वो विचारों को सही दिशा दे. लेकिन आर्ट आफ लिविंग के गुरु श्री श्री रविशंकर का क्लाइमेक्स के समय इंट्री मामले को थोड़ा उलझा देता है. अगर मन में कहीं से भी बाबा रामदेव या अन्ना के प्रति सहानुभूति भी होती है, तो ऐन मौके पर तथाकथित गुरुओं की सीन में इंट्री दिमाग को विरोधाभासों से भर देता है.
हम किसी की इंट्री के विरोधी नहीं हैं, लेकिन एक जनांदोलन में किसी भी ऐसे व्यक्ति, जो किसी एक पंथ या विचार को लीड करता है, क्या पूरी तरह भागीदार होना चाहिए. अगर ऐसा हो, तो वो पूरा तामझाम छोड़ कर आंदोलन में शरीक हों. कर्म युद्ध करें. हर बैठक में शामिल हों. पीएम मनमोहन सिहं ने यह सही कहा था कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है. भ्रष्टाचार कोई एक दिन में पनपा राक्षस नहीं है. गांव-देहात में पंचायत से शुरू होकर से ऊपर केंद्र तक फैला है. अन्ना के आंदोलन की सबसे बड़ी बात है कि अन्ना ने जन लोकपाल के तहत इसमें पूरे सिस्टम को जवाबदेह बनाने की बात कही है. बात सही भी है. लेकिन ये आंदोलन बाबा रामदेव टाइप न हो, जो सिर्फ दो रात तक मैदान में भजन-कीर्तन और भाषण के बाद भागमभाग में बदल जाए.
मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी जैसे लोग, जिन्होंने सिस्टम को देखा और जाना है, अगर वे अन्ना के साथ चल रहे हैं, तो पब्लिक भी जोशो खरोस के साथ आवाज बुलंद कर रही है. लेकिन इसमें श्री श्री रविशंकर, जो कि परम आदरणीय है, के मध्यस्थता के लिए शरीक होना गलत संकेत दे जाता है.हमारे हिसाब से यह सही हुआ कि श्री श्री को लौट जाना पड़ा. अगर उन्हें भी अन्ना जी से मिलने दिया जाता है, तो मामला निश्चित रूप से उलट जाता. अभी तक जो स्थिति है, उसमें अन्ना को जोश के साथ होश भी रखना होगा. जन दबाव बनाना उचित है, लेकिन हर प्रक्रिया एक समय मांगती है, ये सोचना होगा. समय और समझदारी से ही सिस्टम विकसित भी होगा. देखते हैं कि अन्ना क्या करते हैं.
पिछली बार भी यही हुआ, बाबा रामदेव ब्लैक मनी लाते-लाते व्यक्तिगत स्तर पर आरोप-प्रत्यारोप में उतर आए. यहां बात होनी चाहिए, दो पक्षों के बीच. बहस होनी चाहिए दो पक्षों के बीच, जो तर्क के सहारे एक-दूसरे का जवाब दें और उससे जो सामूहिक निष्कर्ष निकले, वो विचारों को सही दिशा दे. लेकिन आर्ट आफ लिविंग के गुरु श्री श्री रविशंकर का क्लाइमेक्स के समय इंट्री मामले को थोड़ा उलझा देता है. अगर मन में कहीं से भी बाबा रामदेव या अन्ना के प्रति सहानुभूति भी होती है, तो ऐन मौके पर तथाकथित गुरुओं की सीन में इंट्री दिमाग को विरोधाभासों से भर देता है.
हम किसी की इंट्री के विरोधी नहीं हैं, लेकिन एक जनांदोलन में किसी भी ऐसे व्यक्ति, जो किसी एक पंथ या विचार को लीड करता है, क्या पूरी तरह भागीदार होना चाहिए. अगर ऐसा हो, तो वो पूरा तामझाम छोड़ कर आंदोलन में शरीक हों. कर्म युद्ध करें. हर बैठक में शामिल हों. पीएम मनमोहन सिहं ने यह सही कहा था कि उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है. भ्रष्टाचार कोई एक दिन में पनपा राक्षस नहीं है. गांव-देहात में पंचायत से शुरू होकर से ऊपर केंद्र तक फैला है. अन्ना के आंदोलन की सबसे बड़ी बात है कि अन्ना ने जन लोकपाल के तहत इसमें पूरे सिस्टम को जवाबदेह बनाने की बात कही है. बात सही भी है. लेकिन ये आंदोलन बाबा रामदेव टाइप न हो, जो सिर्फ दो रात तक मैदान में भजन-कीर्तन और भाषण के बाद भागमभाग में बदल जाए.
मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी जैसे लोग, जिन्होंने सिस्टम को देखा और जाना है, अगर वे अन्ना के साथ चल रहे हैं, तो पब्लिक भी जोशो खरोस के साथ आवाज बुलंद कर रही है. लेकिन इसमें श्री श्री रविशंकर, जो कि परम आदरणीय है, के मध्यस्थता के लिए शरीक होना गलत संकेत दे जाता है.हमारे हिसाब से यह सही हुआ कि श्री श्री को लौट जाना पड़ा. अगर उन्हें भी अन्ना जी से मिलने दिया जाता है, तो मामला निश्चित रूप से उलट जाता. अभी तक जो स्थिति है, उसमें अन्ना को जोश के साथ होश भी रखना होगा. जन दबाव बनाना उचित है, लेकिन हर प्रक्रिया एक समय मांगती है, ये सोचना होगा. समय और समझदारी से ही सिस्टम विकसित भी होगा. देखते हैं कि अन्ना क्या करते हैं.
4 comments:
जितना मैंने अध्यात्म को और श्री श्री रविशंकर जी को टी वी के माध्यम से समझा है ..वे तो हर काम को सिर्फ ऊपर वाले की मर्जी समझ कर उस के अनुरूप चलने वाले हैं ...वो किसी भी पौलीटिक्स से वास्ता नहीं रखते ...वो तो व्यक्ति विशेष के सामने भी आईना ही रखेंगे और उसे उसकी क्षमताओं का अहसास करा कर जीवन उद्देश्य का भान ही करायेंगे ...यानि मनुष्य मात्र की भलाई ...
aap maane ya n maane, badlav sirf raamdev ji hi la sakte hain.
बहुत अच्छी पोस्ट .. आपके इस पोस्ट की चर्चा अन्ना हजारे स्पेशल इस वार्ता में भी हुई है .. असीम शुभकामनाएं !!
इसे निश्चित ही सकारात्मक लेखन कहा जाएगा।
हम हिंदी ब्लॉगिंग गाइड लिख रहे हैं, यह बात आपके संज्ञान में है ही।
क्या आप इस विषय में तकनीकी जानकारी देता हुआ कोई लेख हिंदी ब्लॉगर्स के लिए लिखना पसंद फ़रमाएंगे ?
अब तक हमारी गाइड के 26 लेख पूरे हो चुके हैं। देखिए
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