Thursday, July 24, 2014

जिंदगी को हाय, रैट रेस को बाय



बच्चे बड़े हो रहे हैं. दिनों दिन लंबे. उनके कपड़े छोटे हो रहे हैं. परिवर्तन का अहसास. जिसे टरकाया नहीं जा सकता. छुपाया नहीं जा सकता. न खुद से और न दुनिया से. 40 साल की उम्र में आप खुद से सवाल करते हैं-आगे क्या? आगे आपके लिए अब कैसी जिंदगी होनी चाहिए?  कई दोस्त नाकामयाबी या फलां...फलां के कामयाब होने की कहानी कहते हैं. मैं सुनता रहता हूं. मैं उनसे सीखने की कोशिश करता रहता हूं. सिस्टम में बने रहने के लिए जरूरी है. लेकिन अब उस चूहा दौड़ या रैट रेस में रहने का दिल नहीं करता, जिसमें न तो सिस्टम बनता है और न रिलेशन. कई लोग खुद के कामयाब होने की कहानी खुद बताते हैं. मैं नहीं बताता, क्योंकि मैं खुद को तोप नहीं मानता और  न ही उन चुनिंदा लोगों में शुमार पाता हूं, जो पत्रकारिता या जीवन में शहंशाह या यूं कहें खुद को तोप कहलाना पसंद करते हैं. 

आज कल जब फ्री हूं. बेटियों के साथ सुबह-शाम खेलता हूं. उनकी टेंशन को अपनी मानकर झेलता हूं, तो पाता हूं कि अपनी दुनिया के कितने अहम हिस्से को मैं रैट रेस में शामिल होने के दौरान मिस करता था. आसपास देख रहा हूं, परिवार टूटते हुए. बुजुर्गों को सहारे के लिए भटकते हुए. फ्लैट कल्चर डेवलप होते हुए, जिसमें सबका अपना एक घर होगा. उस घर में सिर्फ दो आदमी और दो बच्चे होंगे. दीवारों पर न तो पेंसिल से लिखी गई गंदगी मिलेगी और न ही बगल की चाची जी के ताने या मुस्कुराहट. वैसे भगवान की दया से जहां रहता हूं, वहां खूब बातें होती हैं. आज भी जिंदादिली कायम है. मेरे हिसाब से मेरे लिए अगले दस साल एक संतुष्टि से भरा जीवन होना चाहिए. जिसमें न तो खूब पैसा हो और न खूब टेंशन. पेट भर जाए. लोग मुस्कुरा कर आगे बढ़कर गले मिलें और ढेर सारी बातें करें देश और दुनिया की. मुझे उनकी कामयाबी की कहानी और उनके शोहरत के चांद से कोई मतलब नहीं. 

मैं जानता हूं कि जिंदगी में चलते हुए कई मोड़ आए होंगे. कहीं उन्होंने जंग जीती होगी, तो कहीं हारी होगी. लेकिन मुझे उनकी उस व्यक्तिगत जंग से कोई मतलब नहीं है. मुझे उनसे एक मुलाकात भर में मिलनेवाली आत्मायता से मतलब है. मैं दो रुपए की चाय की प्याली और जोरदार ठहाकों के बीच सुकून के पल को महसूस करना चाहता हूं. जाहिर है कि जो रैट रेस में शामिल होने के लिए दीवाने बने फिरते हैं, उन्हें इन चीजों के लिए फुर्सत नहीं है. लेकिन जिन्हें इनसे कोई मतलब नहीं है, वे मेरी जिंदगी के आनेवाले दस सालों में कभी भी कहीं भी खुलकर मिल सकते हैं.

No comments:

Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

अमर उजाला में लेख..

अमर उजाला में लेख..

हमारे ब्लाग का जिक्र रविश जी की ब्लाग वार्ता में

क्या बात है हुजूर!

Blog Archive