Wednesday, February 25, 2015

अब बदल गयी है जिंदगी

बरियातू स्थित हमारा मुहल्ला भी अब पहले जैसा नहीं रहा. आज जब बाहर बारिश हो रही है और हम रूम में बैठकर बाहर गिरते बूंदों को टटोलने की कोशिश कर रहे हैं, तब उन बीते दिनों में सड़कों पर पैदल चलते हुए भींगने का दौर भी याद है. उन दिनों कालोनी के गोलचक्कर से लेकर स्कूल तक ही अपनी दुनिया सिमटी हुई थी. गोलचक्कर से एक किमी की दूरी पर स्थित मंदिर तक चक्कर लगाकर ही खुद को संतुष्ट कर लिया करते थे. यूं कहें कि हम अपने बनाए कम्फर्ट जोन में काफी खुश थे. उन दिनों जो भी फिरायालाल जाता, वह हमें यही बताता कि रांची गए थे, यानी रांची मायने फिरायालाल. बरियातू तो बाहरी इलाके जैसा था. लेकिन अब रांची फैल गई है. बदल गई है. हमारा मुहल्ला भी अब दूर-दूर तक फैल गया है.
वैसे भी बदलना तो हमारी नियति में है. हम हर रोज बदलते हैं. विचार से. दिल से. नजरिए से. बचपन भी हर क्लास के लेवल पर बदलता रहता है. अचानक से दुनिया बड़ी लगने लगती है. काफी बड़ी. रांची के बरियातू में स्थित तीन रूम के छोटे से फ्लैट में हम चार भाई-बहनों की दुनिया दौड़ती रहती थी. उन दिनों स्कूल के हेडमास्टर साहब थोड़े कड़क किस्म के थे. उन्हें जब सजा देनी होती थी, तो आंख दिखाकर काम तमाम कर देते थे. सब बताया करते थे कि वे स्वतंत्रता सेनानी थे. उनकी प्रतिष्ठा भी काफी थी. हमेशा खादी पहनना उनकी आदत में शुमार था. घोर गांधीवादी. किसकी मजाल थी कि कोई चूं तक बोले. याद है कि ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति बने थे. हमें परीक्षा में नए राष्ट्रपति जी के बारे में सवाल भी पूछा गया था. दुनियादारी से दूर हम नन्हे बच्चे पद और उसकी महत्ता से अनजान थे. हम नए राष्ट्रपति महोदय का नाम नहीं जानते थे. तब हमें हमारी टीचर्स ने खुद आकर सवाल के उत्तर लिखाए थे. उस समय प्रधानमंत्री के नाम पर इंदिरा जी का नाम जुबान पर रटा था.
अब अगर क्लास रूम की बात करें, तो अपने मिडिल स्कूल में मैं बैक बेंचर था. न ज्यादा दोस्ती और न ज्यादा दुश्मनी. स्कूल के पीछे के मैदान में लंच के वक्त लड़कों का हुजूम खेल खेलने में मगन रहता था. उस खेल में सबसे हिट था, तो बम पाट. जिसमें रबड़ की गेंद से एक-दूसरे को निशाना बनाना पड़ता था. मुझे उसमें मार ही ज्यादा पड़ती थी. लेकिन फिर भी पार्टिसिपेट जरूर करता था.
क्लास फोर में था. एक दिन मेरे बगलवाले बेंच पर एक लड़का बैठा मिला. नाम पूछा, बताया संजय बोस. पेंटिंग में महारत हासिल थी उस लड़के को. उसकी पहली पेंटिंग टार्जन की देखी. सुंदर लगा था उस वक्त. हम उतनी सुंदर चित्रकारी नहीं कर पाते थे. उसे देखकर खुद को कमतर पाता था. कुछ सीखने की गुंजाइश से उसे दोस्त बना बैठा. बाद में बड़े होने पर संजय ने फोटोग्राफी में भी ऐसी महारत हासिल कर ली कि आज वह कई लोगों के लिए गुरु समान हो गया है. उन दिनों स्कूल से आते वक्त उसके घर पर ठहरने की जरूरत महसूस होती थी. अमरूद जो लेना होता था. स्कूल के लड़के भी अमरूद पाने के चक्कर में संजय के दोस्त बन चले थे. लेकिन मैं और मेरा भाई उसमें थोड़ा आगे रहे. हमने उससे पक्की दोस्ती कर ली. फिर शाम में शुरू हुआ संजय के घर पर गपशप करने का दौर. जहां होते थे हम तीन जन मैं, मेरा भाई और संजय. साथ में होती थी डेक से उठती किशोर की आवाज. संजय के यहां गुजरी शामों में मैंने जगजीत सिंह, किशोर, लता, अभिजीत सबके गीत झूमकर सुने.
हमारी दुनिया कुछ दिनों के लिए बस संजय के घर पर ही शाम के वक्त गुजरती रही. शतरंज की बाजी भी खूब चलती. जिसमें ज्यादातर समय जीतने की जिद लिए संजय के भाई साहब टिके रह जाते थे. चाय और गप्पबाजी के आगे बाहर की दुनिया फीकी नजर आती थी. हमारी जिंदगी स्वकेंद्रित हो चली थी या यूं कहें हम खुलकर जी रहे थे और खुद में खुश थे. बेफिक्र, बिना चिंता के. उस वक्त यह नहीं जानते थे कि बाद की दुनिया कितनी कठोर, प्रोफेशनल और इमोशनलेस हो जाएगी. जिसमें सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट का ही मामला चलता है.

Friday, January 9, 2015

हर दिन नशे की माफिक होता है....


जाने-अनजाने जब अगल-बगल या पड़ोस के किसी बंदे से उसके दर्द के किस्से पूछें, तो आपको अपना दर्द कमतर नजर आयेगा. मुश्किलें तो आयेंगी और चली जायेंगी.. लेकिन खुद के बनाये संसार से इतर जब खिड़की के बाहर की दुनिया में झांकेंगे, तो छोटी दुनिया बड़ी और आपका संघर्ष छोटा नजर आयेगा. जिंदगी समंदर है, गोता लगाइये. हर दिन नशे की माफिक होता है, बस
उसे खुलकर पीने को जिगर चाहिए.

Thursday, August 7, 2014

रेशमा का जाना...

पिछले साल अगस्त में ही. रात के एक बजे. जब सारी दुनिया सो रही थी, मेरे घर के दरवाजे के पास हलचल थी. हलचल एक कुत्ते की वजह से, जो बारिश से बचने की कोशिश में ऊपर चढ़ आया था. किसी तरह उसे नीचे उतारा और घर में घुस गया. सुबह उठा, तो दुम हिलाता वह पीछे चला आया. न जाने शहर के किस कोने से आया था. मैं न चाहते हुए भी मां से एक रोटी मांगकर लाया और उसे खाने को दे दिया. वहां से आफिस मीटिंग के लिए आया, तो रात की घटना दिमाग को बेचैन कर दे रही थी. फिर जब घर आया, तो उसी कुत्ते को फिर अपने दरवाजे पर पाया. न जाने कौन सी चीज उसे मेरे पास खींचकर ले आ रही थी. न तो मैं उससे उस रात से पहले मिला था और न ही कालोनी में कुत्तों के झुंड में देखता था. जो भी हो. हमारी दोस्ती जम गई. हर रोज हम उसे कुछ खाने को देते, तो वह भी कुछ देर के लिए इधर-उधर उछल-कूद कर हमें इम्प्रेस करने की कोशिश करती. अच्छा लगता था. मेरी बेटियों ने उसे नाम भी दे दिया था रेशमा. प्यारा नाम. बेटियों के पास खासी प्लानिंग थी उसे क्या और कब खिलाना है.

हमारे घर के सामने बड़ा सा मैदान है. रेशमा रोज उसी में इधर-उधर दौड़ा करती थी. कालोनी के सारे कुत्तों की वह सरदार थी. फिर एक दिन अचानक रेशमा गायब हो गई. रोज मेरी और मेरी बेटियों की नजरें उसे देखने के लिए घर के आसपास और मैदान के दूर किनारे तक टटोलतीं और फिर चुपचाप हम आफिस और बेटियां स्कूल के लिए चल पड़तीं. एक टिस रह गई थी मन में-आखिर रेशमा कहां चली गई. कुछ दिनों के लिए आई. प्रेम की भाषा पढ़ा गई. आज भी हम जब शहर की गलियों में अपने स्कूटर पर चलते हैं,  तो निगाहें उसे खोजती हैं. कहीं वह मिल जाए.

आज भी कई शख्स जाने-अनजाने हमसे अनजाना रिश्ता बनाकर चले जाते हैं. हम इस इंतजार में रहते हैं कि वह फिर आएगा. लेकिन ऐसा होता नहीं है. कई बार कोई अनजाना अचानक आता और फिर चला जाता है, लेकिन अपने रिश्ते की गर्माहट से हमें इतना सराबोर कर जाता है कि बस हम उसके लिए शुक्रिया शब्द का ही इस्तेमाल कर पाते हैं. भागते जीवन के बीच रेशमा का आना और चला जाना हमारे लिए कुछ ऐसा ही था. उसके बाद से मैं अपने क्वार्टर और उसके आसपास मौजूद रेशमा के तमाम हमराज रहे दोस्तों को भी चुपचाप और शांत देखता हूं. रेशमा के रहते उनकी ऊर्जा, लय और दौड़ने के मौजूद सुरूर को अब नहीं देख और महसूस कर पाता हूं. रेशमा आयी तो दो महीने के लिए थी, लेकिन जाते-जाते कुछ ऐसा कर गई कि बस उसके लिए शब्द भी कमजोर पड़ जा रहे हैं. ऐसे देखें, तो अपने घर से निकलने के बाद दुनिया में सड़क पर या मैदान में हर कोई बादशाह है. उसके पास अगर कुछ देने के लिए रहता है, तो प्रेम से भरा व्यवहार या दो मीठे बोल. लेकिन आज के प्रोफेशनल होते जमाने में हम वह भी नहीं दे पाते. दुनियादारी में यह सिलसिला चलता रहेगा और हम भी इस गणित को सुलझाते रहेंगे. लेकिन इसके इतर जो एक दुनिया है, जहां सबकुछ राफ-साफ है, वहां मामला क्लीयर रखना पड़ता है. क्योंकि यहां पर दिल या रिश्ते पैसा नहीं, बल्कि अपनापन मांगते हैं
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