Thursday, August 7, 2014

रेशमा का जाना...

पिछले साल अगस्त में ही. रात के एक बजे. जब सारी दुनिया सो रही थी, मेरे घर के दरवाजे के पास हलचल थी. हलचल एक कुत्ते की वजह से, जो बारिश से बचने की कोशिश में ऊपर चढ़ आया था. किसी तरह उसे नीचे उतारा और घर में घुस गया. सुबह उठा, तो दुम हिलाता वह पीछे चला आया. न जाने शहर के किस कोने से आया था. मैं न चाहते हुए भी मां से एक रोटी मांगकर लाया और उसे खाने को दे दिया. वहां से आफिस मीटिंग के लिए आया, तो रात की घटना दिमाग को बेचैन कर दे रही थी. फिर जब घर आया, तो उसी कुत्ते को फिर अपने दरवाजे पर पाया. न जाने कौन सी चीज उसे मेरे पास खींचकर ले आ रही थी. न तो मैं उससे उस रात से पहले मिला था और न ही कालोनी में कुत्तों के झुंड में देखता था. जो भी हो. हमारी दोस्ती जम गई. हर रोज हम उसे कुछ खाने को देते, तो वह भी कुछ देर के लिए इधर-उधर उछल-कूद कर हमें इम्प्रेस करने की कोशिश करती. अच्छा लगता था. मेरी बेटियों ने उसे नाम भी दे दिया था रेशमा. प्यारा नाम. बेटियों के पास खासी प्लानिंग थी उसे क्या और कब खिलाना है.

हमारे घर के सामने बड़ा सा मैदान है. रेशमा रोज उसी में इधर-उधर दौड़ा करती थी. कालोनी के सारे कुत्तों की वह सरदार थी. फिर एक दिन अचानक रेशमा गायब हो गई. रोज मेरी और मेरी बेटियों की नजरें उसे देखने के लिए घर के आसपास और मैदान के दूर किनारे तक टटोलतीं और फिर चुपचाप हम आफिस और बेटियां स्कूल के लिए चल पड़तीं. एक टिस रह गई थी मन में-आखिर रेशमा कहां चली गई. कुछ दिनों के लिए आई. प्रेम की भाषा पढ़ा गई. आज भी हम जब शहर की गलियों में अपने स्कूटर पर चलते हैं,  तो निगाहें उसे खोजती हैं. कहीं वह मिल जाए.

आज भी कई शख्स जाने-अनजाने हमसे अनजाना रिश्ता बनाकर चले जाते हैं. हम इस इंतजार में रहते हैं कि वह फिर आएगा. लेकिन ऐसा होता नहीं है. कई बार कोई अनजाना अचानक आता और फिर चला जाता है, लेकिन अपने रिश्ते की गर्माहट से हमें इतना सराबोर कर जाता है कि बस हम उसके लिए शुक्रिया शब्द का ही इस्तेमाल कर पाते हैं. भागते जीवन के बीच रेशमा का आना और चला जाना हमारे लिए कुछ ऐसा ही था. उसके बाद से मैं अपने क्वार्टर और उसके आसपास मौजूद रेशमा के तमाम हमराज रहे दोस्तों को भी चुपचाप और शांत देखता हूं. रेशमा के रहते उनकी ऊर्जा, लय और दौड़ने के मौजूद सुरूर को अब नहीं देख और महसूस कर पाता हूं. रेशमा आयी तो दो महीने के लिए थी, लेकिन जाते-जाते कुछ ऐसा कर गई कि बस उसके लिए शब्द भी कमजोर पड़ जा रहे हैं. ऐसे देखें, तो अपने घर से निकलने के बाद दुनिया में सड़क पर या मैदान में हर कोई बादशाह है. उसके पास अगर कुछ देने के लिए रहता है, तो प्रेम से भरा व्यवहार या दो मीठे बोल. लेकिन आज के प्रोफेशनल होते जमाने में हम वह भी नहीं दे पाते. दुनियादारी में यह सिलसिला चलता रहेगा और हम भी इस गणित को सुलझाते रहेंगे. लेकिन इसके इतर जो एक दुनिया है, जहां सबकुछ राफ-साफ है, वहां मामला क्लीयर रखना पड़ता है. क्योंकि यहां पर दिल या रिश्ते पैसा नहीं, बल्कि अपनापन मांगते हैं

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