Monday, September 22, 2008

आशा है--गुस्सा हमेशा रहेगा कम, चीनी ज्यादा हो या कम

मन कांप उठता है, जब कोई कुछ अनायास कठोर शब्द कह जाता है। क्रोध आता है। सीमा लांघकर कुछ कर गुजरने को मन आमादा हो जाता है। पर ये स्थिति हमेशा नहीं होती है। कभी-कभी आती है।

ग्रेटर नोएडा में कंपनी के अधिकारी को गुस्से में आंदोलित कमॆचारियों ने पीट-पीट कर मार डाला। नहीं सोचा कि वह भी किसी का बेटा, बाप या पति होगा। गुस्साये हुए लोगों ने अधिकारी की जान ले ली। इस बात ने खुद की सोच को बदलने को बाध्य कर दिया है। सोचता हूं कि हम-आप किसी की जिंदगी लेनेवाले कौन होते हैं? जब हम किसी को जिंदगी दे नहीं सकते हैं, तो लेने का अधिकार किसने दे दिया। शायद वह भगवान भी अपनी सृष्टि के इस भयानक स्वरूप को देखकर कांप उठता होगा।

सवाल फिर वही, आखिर इतना गुस्सा क्यों? माना कंपनी के अधिकारी की नीयत ठीक नहीं होगी या उसने कुछ कह दिया होगा, पर इतना गुस्सा क्यों कि आप किसी की जान ले लें।

जाहिर है, बड़े शहरों में ये घटनाएं आम होती जा रही हैं। कानून हाथ में लेने की घटनाएं बढ़ रही हैं। फिल्मों और किताबों से जिंदगी चलती नहीं। रोटी-रोजगार भाषणबाजी से मिलती नहीं। पर आप-हम हैं कि सुनहरे ख्वाब के पर लगा जिंदगी को हवा देने की कोशिश में लगे हैं। जब उड़ नहीं पाते, तो जमीन भी उतनी ही दूर नजर आती है, जितनी दूर आसमां। परिणाम होता है अनियंत्रित गुस्सा।

इसी अनियंत्रित गुस्से का शिकार शायद ग्रेटर नोएडा में अधिकारी बन बैठा। गुस्सा गांधी को भी आया था, जब साउथ अफ्रीका में अंगरेज टीटी ने उन्हें भारतीय होने के कारण ट्रेन से नीचे फेंक दिया। लेकिन उस गुस्से से निकली आग ने अंगरेज शासन की नींव हिला दी। सवाल यह है कि समाज की दिशा दशा बदलने की रफ्तार ऐसी क्यों हो गयी है? आत्मनियंत्रण खोता समाज जिन कारनामों को रोज-रोज पेश कर रहा है, उससे तमाम विचारक परेशानी में जरूर होंगे। आप गुस्सा करिये, पर इतना नहीं कि यह आपके जीवन की दिशा बदल दे।

इकबाल के इस शेर के साथ अंत करना चाहूंगा-
खुद ही को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से पूछे कि बता तेरी रजा क्या है।

साथ ही एक गीत के बोल
रोते-रोते हंसना सीखो....

शायद आप आगे खुद समझ गये होंगे।

आशा है--
गुस्सा हमेशा रहेगा कम, चीनी ज्यादा हो या कम

फोटो गुगल से साभार

2 comments:

Udan Tashtari said...

गुस्से दिमाग को दूर कर देता है..अतः उस पर काबू आवश्यक है. बहुत दुखद घटना रही.

dahleez said...

क्या बात है पऱभात जी। अापने तो गुस्से पर बड़ा बिढ़या पीस िलख मारा है। पर मैं एक बात बता दूं यह गुस्सा बड़ी चालाक चीज है, हमेशा कमजोर लोगों पर ही अाता है। अापने कभी िकसी को अपने से मजबूत अादमी पर गुस्सा करते देखा है। पीछे में भले ही अाप िकतना भी गुस्सा हो जाइये।

Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

अमर उजाला में लेख..

अमर उजाला में लेख..

हमारे ब्लाग का जिक्र रविश जी की ब्लाग वार्ता में

क्या बात है हुजूर!

Blog Archive