दिल्ली में फिर मुठभेड़, एक इंस्पेक्टर की शहादत और दो आंतकियों का मारा जाना देश के लिए सबसे बड़ी खबर थी। खबरिया चैनलों ने आंतकवाद यानी टेररिज्म के खिलाफ जंग छेड़ने का आह्वान किया। हर कोई पूछ रहा-आखिर कब तक आतंकवाद का ये घिनौना खेल जारी रहेगा? टारगेट हो-टोटल एलिमिनेशन आफ टेररिज्म। चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े।
पर सबसे पहले यहां सिस्टम को चलानेवालों की आत्मा को जगाना जरूरी है। आप-हम चाहें लाख चिल्ला और तड़प लें, अंत में सारी बातें इन सिस्टम चलानेवालों के पास आकर ही खत्म होती हैं। इस व्यवस्था में आम आदमी सिफॆ सहयोग कर सकता है। सिस्टम को बांध नहीं सकता, चला नहीं सकता। आतंकवाद के खिलाफ धारदार रणनीति का अभाव और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ने इन चंद राष्ट्रविरोधियों के हौसलों को मजबूत कर दिया है। बात पूरे सिस्टम की चेंजिंग की होनी चाहिए। सिफॆ जमीर जगाने की बात करने से क्या होगा? जरूरत पूरे सिस्टम को मजबूत बनाने की है। इस मुद्दे को डिसास्टर मैनेजमेंट की शक्ल के रूप में देखना जरूरी है। आंतकवाद आज ऐसा घाव बन गया है, जो लाख दवा के बावजूद पूरे देश में फैल रहा है। बात यह देखने की है कि आखिर कमी किस जगह है। धमॆ और भाषाई दीवारों को लांघ कर ही इस सिस्टम को मजबूत कर सकते हैं। हर आतंकी घटना के दो-चार दिन बाद लोगों में उसे भूलने की बीमारी घर करती जा रही है। जरूरत इस अंसवेदनशीलता को खत्म करने की है। राज्यों के आपसी मतभेद और केंद्र का एकतरफा रवैया खत्म हो। पॉलिसीमेकर एकमत हों और उनका टारगेट टोटल एलिनिमेशन आफ टेररिज्म हो, तभी रुकेगा आतंकवाद का पहिया। जब अपनी बाजुओं में ही ताकत नहीं होगी, तो आपकी कमजोरी दूसरे की ताकत बन जाती है। जरूरत बाजुओं को मजबूत करने की है, चाहे उसके लिए कितनी भी कसरत क्यों न करनी पड़ी। जब पंजाब में आंतकवाद का खात्मा हो सकता है, पं बंगाल में नक्सलवाद पर लगाम कसी जा सकती है, तो इस आतंकवाद को क्यों नहीं खत्म क्या जा सकता है? जाहिर है, बात फिर उसी सिस्टम और उसको मजबूत करने पर आकर टिक जाती है।
Friday, September 19, 2008
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2 comments:
टारगेट हो-टोटल एलिमिनेशन आफ टेररिज्म। चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े।
बिल्कुल सही. पर यह वोट और नफरत की राजनीति करने वाले कभी समझेंगे क्या?
टारगेट हो-टोटल एलिमिनेशन आफ टेररिज्म। चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े।
-बिल्कुल सही. प्रभावी आलेख.
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