बाटला हाउस मुठभेड़ मामले में तमाम बहसों और चरचाओं के बाद अब अमर सिहं खुले। फिर चौतरफा निंदा सुनकर और आरोपों से घबरा कर देने लगे गोलमटोल जवाब। वैसे राजनीति के पक्के खिलाड़ी अमर सिंहजी की पिछली राजनीतिक उठापटक की इन दिनों चांदी है। एक खास समुदाय के सबसे बड़े पैरोकार बन बैठे अमर सिंह पुलिसवाले की शहादत पर ही उंगली उठा रहे हैं। फिर वही सवाल क्या कोई पुलिसवाला जानबूझ कर खुद को मरने झोंक देगा? अमर सिंह ने सवाल उठाया-इंस्पेक्टर ने बुलेट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहनी थी। अब क्या पुलिसवाले हर इनकाउंटर से पहले अमर सिंह से सलाह मशविरा कर रणनीति बनायेंगे। ये बात माननी चाहिए कि जब चारों ओर से गोलियां चलती रहती हैं, तब ये राजनीतिक दलीलें बेकार हो जाती हैं। उसमें भी अगर इंस्पेक्टर ने बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहनी, तो यह पुलिस की एक खास रणनीति होगी। अब ये मैं दावा नहीं कर रहा, लेकिन पुलिस मजाक करने तो वहां कतई नहीं गयी होगी।
इंडियन पोलिटिकल सिस्टम की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही है कि पुलिस महकमा आलोचनाओं के मामले में सबसे ज्यादा शिकार रहा है। एक पुलिसवाला अपनी सुविधाओं को छोड़ कर हमारी, साहबों की और आम जनता की दिन-रात सेवा करता है। उसके बदले में ये दोहरी मानसिकतावाले आरोप-प्रत्यारोप पुलिस के मनोबल को गिराने का ही काम करते हैं। सच को सच मानने से इनकार करने के कारण ही आज देश इस स्थिति में पहुंच गया है, जहां से कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। क्या यह जरूरी है कि देश और सियासत बस चंद सवालों के इदॆ-गिदॆ घूमता रहे। अमर सिंह जी क्यों नहीं उन लाखों गरीबों की आवाज उठाते हैं, जो अशिक्षित हैं और जिन्हें कहीं भी न्याय नहीं मिल रहा है। उन उग्रवाद प्रभावित राज्यों की जनता की चिंता करते हैं, जहां हजारों पुलिसवाले नक्सली हमलों या विस्फोटों में मारे जाते हैं। वैसे राजधानी में बैठकर कैमरे के सामने बयानबाजी करने का फोकस दूसरा ही होता है। पहले तो पापुलेरिटी मिल ही जाती है। साथ ही मूल समस्याओं से भी देश की जनता का ध्यान हट जाता है।
इधर हर दल संवेदनशील मुद्दे पर बयानबाजी कर रहा है। उन हजारों घरों के बारे में सोचिये, जिनके मालिक इन बम विस्फोटों में मारे गये। हम यहां यह नहीं कह रहे हैं कि मारे गये लड़के आतंकवादी ही थे, लेकिन फिर वही बात धुआं आग के बिना नहीं होता। सबसे बड़ा अहम प्रश्न है कि इन तमाम आरोप-प्रत्यारोपों और दबाव के बीच पुलिस आखिर अपना काम कैसे करे? अमर सिंह से पहले लेफ्ट की हाय-तौबा ने देश को अशांत करके रख दिया। इस मामले में तो कांग्रेस की दाद देनी होगी कि तूफान से किश्ती निकाल उसने फिर राह पकड़ ली। लेकिन अब अमर सिंह की अमर वाणी रही-सही कसर पूरी कर दे रही है।
भैया जब बोलो, तो खुलकर बोलो। ऐसा क्यों कि आप शहीद पुलिसकमीॆ की शहादत पर सवाल उठाते हो और फिर मदद की भी पेशकश करते हो। यह तो उस व्यक्ति और शहादत जैसी चीज के साथ मजाक ही है। अगर आपको संदेह है, तो आप खुलकर इसका विरोध करें। पीड़ित परिवार को मदद देने की बात कहकर मामले को उलझायें नहीं। देश की जनता भी समझ लेगी कि अमर सिंह जी क्या सोचते हैं। ये पलटी मार राजनीति ने पहले ही बहुत सत्यानाश कर डाला है। वैसे भी भारतीय संविधान सबको अपनी बात कहने का मौका देता है, तो फिर इसमें गोलमटोल बयान क्यों?
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