बंगलौर जाना पड़ा। ट्रेन में बैठते समय आशंकाओं और द्वंद्व की मिश्रित भावनाएं थीं। अखबारों में रोज आ रही रिपोटॆ डराती थी। झारखंड, उड़ीसा राज्य को छोड़ते हुए ट्रेन चली जा रही थी। साथ ही सहयात्रियों के साथ संवादों का सिलसिला भी चल पड़ा था। ट्रेनों में आप देश के हर भाग के लोगों से मिलते हैं। जानते है-समझते हैं। बंगलौर के एक युवक से मुलाकात हुई, वह झारखंड में नौकरी कर रहा था दो सालों से। बातचीत में उसने झारखंड में मिलते सम्मान और बिना भय के नौकरी करने की बात बतायी। हमने भी माना कि झारखंड और बिहार में बाहरी-भीतरी का कोई भाव नहीं। लेकिन इसके बाद भी महाराष्ट्र में घट रही घटनाओं की छाप दिलोदिमाग पर हावी थी।
सुबह नागपुर स्टेशन पर ट्रेनों को लेकर थोड़ी पूछताछ करनी पड़ी। स्टेशन पर कमॆचारियों को बताया कि मैं झारखंड, रांची से हूं। क्या कोई मदद मिल पायेगी? आशंका थी कि कोई ऐसी टिप्पणी मिले कि मन कहे लौट चलो वापस अपने घर यानी झारखंड। लेकिन मौजूद कमॆचारी ने मुस्कान लिये स्वागत किया। सारी बातें सिलसिलेवार समझायीं। कहीं कोई शिकन नाम की चीज नहीं थी। मन निभॆय होकर वापस अपने मस्त अंदाज में लौट चुका था। मैंने भी मदद करनेवाले कमिॆयों को थैंक्स कहा और फिर आगे की यात्रा जारी रखी। महानगरों में भी चचाॆओं का दौर था, लेकिन कहीं भी ऐसा नहीं लग रहा था कि बाहरी-भीतरी का लहर स्थानीय लोगों के दिलोदिमाग पर हावी हो। हर कोई इन हो रही घटनाओं के प्रति संवेदनशील नजर आया। रोजी-रोटी की चिंता सबको थी। सबका मानना था कि नौकरी और रोटी की तलाश में कोई कहीं भी जा सकता है। बहस की कहीं कोई गुंजाईश नहीं है। लौटती बेला में भी लोग देश में घट रही घटनाओं के प्रति संवेदनशील लगे। लोग बंगाल से नैनो के जाने को उस राज्य के लिए एक गलत बता रहे थे। बातचीत और संवाद के जरिये बातों को रखने की बात कही जा रही थी। महाराष्ट्र के अखबारों में भी राज्य की बिगड़ती छवियों को लेकर संपादकीय पढ़ा। अब चिंता कमोबेश राज्य की क्षेत्रवाद की राजनीति से बिगड़ती छवि को ठीक करने की है। होनी भी चाहिए, क्योंकि जितना हो चुका है, वही बहुत है।
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1 comment:
भाई माफ़ करना. ऐसा लगा कि आप नागपुर से ही लौट आए. कम से कम बंगलुरु के ट्रेन में बैठने का उल्लेख कर देते तो हमें लगता कि भाई साहब बंगलुरु पहुँच गये होंगे और कोई परेशानी भी नहीं हुई होगी.
http://mallar.wordpress.com
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