Wednesday, November 12, 2008

१.६ करोड़ साल पहले जन्मी थी सरस्वती नदी


चार साल पहले इलाहाबाद गया था। इलाहाबाद में दो नदियां यमुना और गंगा तो दिखती हैं, लेकिन सरस्वती, पता नहीं कहां खो गयी। हमारी आत्मा आज भी उस नदी को झुककर बारंबार प्रणाम करती है। शायद इसी श्रद्धा और इतिहास के प्रति झुकाव ने सरस्वती नदी को खोज निकालने के लिए साइंटिस्टों को प्रेरित किया है। इसी क्रम में अखबार में कुछ जानकारी दिखी, जिसे सोचा लोगों के साथ शेयर करूं।
रिपोटॆ देहरादून से थी। पुरातत्वविद, जियोलॉजिस्ट और भू भौतिकी विषय के विद्वानों ने यह तो बता दिया था कि कैलाश से कच्छ तक बहनेवाली सरस्वती नदी करीब चार हजार साल पहले लुप्त हो गयी, लेकिन यह नहीं बताया जा सका था कि इस नदी का जन्म कब हुआ। अब साइंटिस्टों ने नदी के बहाव क्षेत्रों और सहायक नदियों की बेसिन से चीन मूल की सायप्रिनिड मछलियों के जीवश्म के अध्ययन से यह बताया है कि लुप्त सरस्वती का जन्म १.६ करोड़ वषॆ पहले हुआ था। इस महत्वपूणॆ कायॆ को अंजाम देनेवाले वाडिया संस्थान के साइंटिस्ट डॉ बीएन तिवारी ने करीब दो दशक पहले इस दिशा में काम शुरू किया। १९८२ में डॉ तिवारी को धमॆशाला में १.६ करोड़ वषॆ पुराने सायप्रिनिड मछली के जीवाश्म मिले। इसके बाद १९९६ में लद्दाख में इसी मछली के ३.२ से १.6 करोड़ पुराने जीवाश्म मिले। हाल ही में कच्छ सायप्रिनिड के १.७ करोड़ वषॆ पुराने जीवाश्म मिले हैं। तीनों स्थानों पर मिले सायप्रिनिड मछली के जीवाश्मों ने यह साबित कर दिया है कि ये मछलियां सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों में निवास करती थीं।
सायप्रिनिड मछलियां अरली मॉयोसिन (१.६ से १.७ करोड़) में पायी जाती थीं। लिहाजा साइंटिस्ट इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सरस्वती का जन्म १.६ करोड़ वषॆ पहले हुआ था। डॉ बीएन तिवारी और अनसुया भंडारी के संयुक्त अध्ययन में बताया गया है कि चीन मूल की मछली का कच्छ में मिलना इस बात की ओर संकेत करता है कि ऐसी नदी निश्चित रूप से रही होगी। केएस वल्दिया की पुस्तक सरस्वती द रिवर दैट डिसेपीयडॆ और बीपी राधाकृष्णा व एसएस मेढ़ा की पुस्तक वैदिक सरस्वती में कहा गया है कि मानसरोवर से निकलनेवाली सरस्वती हिमालय को पार करते हुए हरियाणा, राजस्थान के रास्ते कच्छ पहुंचती थी। इस नदी में पायी जानेवाली सायप्रिनिड मछलियां सहायक नदियों के जरिये करगिल, लद्दाख और धमॆशाला पहुंची। डॉ तिवारी ने बताया कि मलाया और वेस्टनॆ घाट की मछलियों की समानता को बताने के लिए स्व. डॉ एसएल होरा ने करीब पांच दशक पहले सतपुरा परिकल्पना दी। सायप्रिनिड मछलियों के जीवाश्मों के अध्ययन से अब इस परिकल्पना की जरूरत नहीं रह गयी है।

8 comments:

Satyendra Tripathi said...

बढिया लिखा है पर सिर्फ लिखने से कुछ नही होगा। कुछ करे भी भाई।

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

गंगा-जमुना- सरस्वती-भारत की पहचान.
उम्र दो करोङ वर्ष है, मान सके तो मान.
मान सके तो मान,कि भारत अमर राष्ट्र है.
आदि काल से चला आ रहा अमर राष्ट्र है.
कह साधक कवि, ज्ञान से आ जाती है मस्ती.
भारत की पहचान, गंगा-जमना-सरस्वती.

ab inconvenienti said...

साइंटिस्ट क्या होता है? क्या इंडियन नेशनल लेग्वेज में इसके लिए कोई डीसेंट वर्ड नहीं है? इंग्लिश वर्डस का यूज़ सपोसेडली ट्रेंडी अपीयरेंस आपके आर्टिकल को देता है, बट जिन वर्ड्स के लिए हमारी लेंवेजेस में इज़ी सिनोनिम्स हैं, उनके लिए भी इंग्लिश वोकेब इन्सर्ट करना कुछ एक्सेसिव नहीं हो जाता?

दिनेशराय द्विवेदी said...

राजस्थान का रेगिस्तान सरस्वती को लील गया, या फिर सरस्वती में पनी की आवक बंद होने से राजस्थान रेगिस्तान हो गया।

"अर्श" said...

itni badhiya jankari deneke liye aapko dhero sadhuwad.....

परमजीत सिहँ बाली said...

जानकारी देनें के लिए आभार।

आपको गुरु नानकदेव जी के जन्मदिन की बधाई।

रंजू भाटिया said...

जानकारी अच्छी दी है आपने

prabhat gopal said...

tippni ke liye sabko abhar

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