Tuesday, December 9, 2008

आइये विश्वास का माहौल बनायें

आमिर खान जब बोलते हैं, तो उसके मायने होते हैं। मीडिया से दूर रहकर अपने काम में लगे रहनेवाले आमिर टीवी पर इंटरव्यू में आये और आतंकवाद के मसले पर खुलकर कहा। कहा-मसले को गंभीरता से लेना होगा। राजनीतिकों को सुधरना होगा। पूरे सिस्टम को बदलने की बात कही। सलमान और शाहखरु भी ऐसा ही मत रखते है। ये तीनों नायक उस समुदाय विशेष से आते हैं, जिन पर हम उंगली उठाते हैं। फिलहाल आतंकवाद का मसला आते ही ऐसा जुनूनी माहौल तैयार हो जाता है, जहां हम लीक से हटकर संतुलित दृष्टि से चीजों को नहीं देखते। गौर करिये आतंकी हमले के बाद मुंबई में मुसलिम समुदाय ने भी आतंकियों के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया।
जाहिर है, भारत पूरी तरह कॉस्मोपोलिटन कल्चर को आत्मसात कर चुका है और इस किसी मसले को धमॆ की दृष्टि से देखना देश को कमजोर करना होगा। आज-कल भले ही ब्लाग और अखबारों की दुनिया में पाकिस्तान को गाली देनेवाले और युद्धोन्माद भड़कानेवाले कितने भी लेख लिखे जायें, लेकिन सच यही है कि हालिया चुनाव में भारतीय मतदाता ने हिन्दुत्व के उग्र स्वरूप को नकार दिया है। ठीक चुनाव से पहले जैसे साध्वी प्रग्या का मसला उठा और उसके बाद आतंकी हमले हुए, उसमें वोटों का ध्रुवीकरण हो जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मतदाताओं ने सोचा समझा, परखा और सूबे को ठीक तरह से चलानेवालों को ही चुना। फकॆ देखिये, पहले और आज के चुनाव में। मतदाता अब बेवकूफ नहीं, ये हमें समझना होगा। इसलिए मीडिया के साथ राजनेताओं को भी इस कास्मोपोलिटन कल्चर को ही प्राथमिकता देने की मानसिकता बनानी होगी। हमें इस चीज को समझना होगा कि हिन्दुस्तान कोई एक दिन में बना देश नहीं है। ये लाखों-हजारों सालों में बंधे रिश्तों से बना है। जब हम पाकिस्तान को भी गाली देते हैं, तो मन कचोटता है। क्योंकि कभी वे भी हमारे अंग थे। ये हमारी बदनसीबी है कि उन्होंने हमें अभी तक समझा नहीं है। जेहन में सबसे अहम सवाल ये है कि मुंबई हमले के बाद भारत को क्या करना चाहिए? इस मामले में पाकिस्तान पर आक्रमण की बात करना कतई उचित नहीं होगा। जहां तक कठोर रुख की बात है, तो हम कम से कम पाकिस्तान पर इतना दबाव जरूर बनायें, वह आगे से ऐसी किसी प्रकार की कारॆवाई करने की हिम्मत न करे। सवाल वही कि क्या पाकिस्तान के नाम पर वगॆ विशेष को निशाने पर लिया जाये। नहीं, कतई नहीं, न तो वैसी बात की जाये, न सोचा जाये। छोटे शब्दों में विश्वास का माहौल तैयार करते हुए ऐसा सिस्टम बनाया जाये, जहां हर वगॆ की सहभागिता हो।

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