Wednesday, December 24, 2008
अजब- गजब है, कियानी साहब का सेटिंगवाला बुद्धि
जहां कोई बुद्धि काम नहीं करती, वहां कौन सी बुद्धि काम करती है, बताइये..., नहीं जानते... .अरे भैया सेटिंगवाली बुद्धि मायने शुद्ध जुगाड़। न योग्यता की जरूरत और न किसी डिग्री की। बिहारी लोगन तो वैसे भी सेटिंग के लिए प्रसिद्ध हैं। नहीं तो, ऐसे ही सब जगह हम लोगों को डंका थोड़े ही बज रहा है। इतना इंडो-पाक टेंशन के बीच एक बात सोचनेवाली ये है कि जरदारी बाबू को सेटिंग वाला बुद्धि काम क्यों नहीं कर रहा है। सिंपल फंडा है, भैया, खुद भी कमाओ, दूसरे को भी कमाने-खाने दो। यहां इंडिया में इन आतंकियों को देखने के बाद सेटिंग का दिमागवाला आदमी सोचता होगा, ये भाई लोग जान क्यों दिये जा रहे हैं। थोड़ा मैच्योर माइंड लगाते, तो अच्छा-खासा सेटिंग करके पाकिस्तान में कमा-खा सकते हैं। इंडियन माइंडसेट बड़ा है, इसलिए अमेरिका के साथ सेटिंग करके ठीक-ठाक चल रहा है, लेकिन पाकिस्तान को पता नहीं क्या हो गया है, जो वहां पहले दिन क बोलता है, वह दूसरे दिन ख बोलने लगता है। इस सब गड़बड़झाला में सबसे काबिल आदमी कियानी साहब ही लगते हैं। सेटिंग करके सबसे पहले मुशरॆफ साहब को दीवार धराये। उससे पहले मुशरॆफ साहब के चहेते बनकर सेनाध्यक्ष बन गये। अब इस बार भारत और आतंकवाद का मोहरा सत्ता दिला देगा। यानी सेटिंग के खिलाड़ी निकले कियानी साहब। करते रहिये, तुम गलत, हम सही। अगर यकीन न हो, तो थोड़ा इंतजार कर लिजिये। कुछ दिन बाद जरदारी साहब प्रतिनिधमंडल लेकर राष्ट्रपति कियानी जी से मिलने जाते जरूर मिल जायेंगे। मतलब सेटिंग के खेल में इंडिया और पाकिस्तान के नेता बुरबक बनकर बकर-बकर किये जा रहे हैं, जैसे दो घर की महिलाएं तू-तू-मैं-मैं करती हैं। निकलेगा कुछ नहीं। हां, अंतुले साहब कोना से म्याऊं करके चुपचाप से दुम दबाकर जरूर बैठ जायेंगे। अब एफबीआइ ने भी सबूत दे दिये हैं। लेकिन पाकिस्तान तब भी नहीं मानेगा। यानी कियानी साहब का सेटिंग तगड़ा है। क्या बात है, भाई? तो कियानी साहब की दादागिरी चल निकली है और भारत को कंधे पर बंदूक रखकर जरदारी साहब को दीवार धराने की तैयारी है। अब ईश्वर भला करे जरदारी साहब का।
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2 comments:
जरदारी का क्या नेतृत्व? कियानी ही असली नेता है, यह समझ लेना चाहिये।
हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और. वहां जरदारी और गिलानी दिखाने के दांत हैं, और खाने के दांत हैं कियानी. यहाँ भी ऐसा ही है, खुलासा क्या करुँ सब जानते हैं. प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री और गृहमंत्री दिखाने के दांतों का इस्तेमाल करके बयानबाजी करते हैं. खाने के दांत इस्तेमाल करते हैं अंतुले का. आम आदमी की चिंता न किसी को वहां है न यहाँ.
इस बार मामला कुछ ऐसा उलझा कि सरकारी हाथी के दिखाने के दांतों को कुछ कहना भी पड़ा और कुछ करना भी पड़ा. कैसे चुप रह पाते, जिन देशों के नागरिक मर गए वह भी मैदान में उतर आए. अपने ही नागरिक मरते तो बस एक दुःख प्रकट करके बात ख़त्म हो जाती, पर इन विदेशी नागरिकों की मौत को कैसे टाल दें? कुछ कहना पड़ा, कुछ करना पड़ा. लेकिन वोट भी बचाने थे, इसलिए अंतुले का नाटक करवाया गया.
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