Friday, December 26, 2008

इंसा लाख बुरा चाहे क्या होता है.......जिंदगी जिंदाबाद


मुंबई पर आतंकी हमले के एक महीने कैसे गुजर गये, पता ही नहीं चला। उधर कसाब जिंदा रहकर भी पल-पल मौत की सिसकियां ले रहा है। लेकिन मुंबई का ताज, ओबेराय और रेलवे स्टेशन में जिंदगानी गलबहियां डालें मस्त चालों से चल निकली है अपनी राह पर। पुरानी यादों को पीछे छोड़। मामला ये है कि इंसा लाख बुरा चाहे क्या होता है, वही होता है, जो मंजूरे खुदा होता है। दुश्मन चाहे जितने नापाक इरादे रखता हो, लेकिन उसके मंसूबों पर हमारे हौसलों, मुस्कुराहटों और उम्मीदों की तमन्नाओं ने चादर डालने का काम किया है। पाकिस्तान खुद अब उन विस्फोटों की टीस लाहौर में हुए बम धमाके के बाद से महसूस कर रहा है। लेकिन हमारे यहां हमारे जवां मन में उन बुरी यादों को भुलाकर नये साल को गमॆजोशी के साथ स्वागत करने की कसमसाहट शुरू हो गयी है। हमारे लोगों ने गजनी फिल्म की उसी दुरुस्त अंदाज में स्वागत किया है, जैसा वे आतंकी हमले के पहले करते हैं। हम भारत के लोग जानते हैं कि कैसे बुरी बातों को रौंद कर जिंदगी को जीतने के लिए आगे बढ़ते हैं। शायद ये हमारे पड़ोसी ने नहीं सीखा। शायद हमारे मन में भी टीस है पाकिस्तान के आतंकियों से पूरी तरह बदला नहीं ले पाने का। लेकिन हम किसी के शरीर को लहूलुहान कर दुखद आनंद की अनुभूति के पक्षधर नहीं हैं। यही हमारी संस्कृति भी रही है। इस धरती में जिंदगी हर रोएं में बसती है। बस जीने की चाहते लिये हम तो यही कहेंगे-जिंदगी जिंदाबाद

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