सम्मान छोटा हो या बड़ा, हर कोई पाना चाहता हैं। मैं भी पाना चाहता हूं। चाहता हूं कि नाम के साथ सम्मान का तमगा लगे। लेकिन एक सम्मान, सम्मान तभी तक रहता है, जब तक वह राजनीति की फांस में न फंसे। एक बार राजनीति शुरू हुई, तो सम्मान का बेड़ा गकॆ होना तय है। सरकारी सम्मान की तो बात ही निराली है। सम्मानित लोगों की घोषणा हुई और शुरू हो गया शोर। कोई खुश है, तो कोई नाराज। कोई ९० साल की उम्र में सम्मानित हो रहा है, तो कोई सबकुछ रहते हुए नजरअंदाज कर दिया गया। अब मीडिया भी बाल की खाल खींच रहा है। करे भी क्यों नहीं, सरकार भी तो वैसे खिलाड़ियों को नजरअंदाज कर रही है, जो ओलंपिक में मेडल जीत कर ला रहे हैं। अब उन्हें सम्मान देने में क्या राजनीति है, ये तो वही जाने। सरकारी सम्मान का महत्व घटा है। शायद लोग इन सम्मानों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते। अब तो समाज का हर तबका भी तबका रत्न का अवाडॆ देने लगा। यानी रत्न की चमक खो रही है। रत्न का वरगीकरण कर दिया गया। खोती चमक के साथ वे सारे नाम भी बैकग्राऊंड में सिमटते जा रहे हैं, जो हर साल सम्मानित होते हैं। ज्यादा लोगों को सम्मान, सम्मान का महत्व कम कर देता है। सम्मान को सम्मानित जगह देने की जरूरत महसूस होने लगी है। ऐसे लोगों को सम्मानित कीजिये, जो सम्मान पानेवालों की रेस में भी उदाहरण की तरह हों। संघषॆ, योगदान, विद्वता और परिपक्वता की लंबी दास्तान समेटे हुए हों।
आखिर अक्षय कुमार भी सम्मान लेने से इनकार कर दते हैं। आमिर को सम्मान का ज्यादा हकदार बताते हैं। भारत में हर सम्मान में विवाद है। पॉलिटिक्स है। स्टेज पर तालियों की गड़गड़ाहट के बीच ट्राफी लेने की जद्दोजहद यानी कांपीटिशन है। अब बात निकली है, तो दूर तलक जायेगी। देखना ये है कि कितनी दूर तक जाती है।
Tuesday, January 27, 2009
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1 comment:
Sahi kaha aapne ki ab ratnon ka bhi vargikaran kar diya gaya hai.
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