Monday, February 16, 2009

गांव की जिंदगी को मरने मत दीजिये

सुबह में जब एनडीटीवी पर बजट समीक्षा वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा के हवाले से की जा रही थी, तो श्री झा की एक टिप्पणी काफी सारे सवालों का जवाब दे गयी थी। उन्होंने कहा कि इस मंदी के दौर में हजारों लोग बेरोजगार हो गये हैं। वे कहीं नहीं जा सकते। आज की तारीख में गांव भी नहीं बचा, जहां जाकर लोग कम से कम अपने कठिन दिन गुजार सकें।
आज ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। भूमि विवाद, नक्सल, गरीबी और बिजली की कमी जैसी कई समस्याएं हैं। शुरू में जब मारुति के साथ एक नये मिडिल क्लास का उदय हो रहा था, तो गांव को बिसारने का सिलसिला शुरू हुआ। एक दौर था, जब गांव में पवॆ त्योहार पर पूरा कुनबा जुटता था। लेकिन आज ऐसा नहीं होता। चाचा-चाची, मौसा-मौसी और ताऊ के रिश्तों की वो बानगी नजर नहीं आती। पैसे से ज्यादा रिश्तों का संकट गहरा गया है। कल तक शहरों में १४-१४ घंटे मेहनत कर कमाने की बात करनेवाले आज बेरोजगार हैं। दो हाथ हैं, लेकिन लाचार होकर ये हाथ सिफॆ ऊपर इस दुआ के साथ उठते हैं कि ईश्वर इस संकट को टाल दे।
वित्त मंत्री का फिर बयान आता है कि मंदी और गहरायेगा। खुलेआम खचॆ, ऊंचे बढ़ते जाते सेंसेक्स, सिंगापुर बनाने का सपना सबकुछ ढहता सा चला गया। इन टूटते सपनों के पीछे कारण कमजोर हो गयी नींव है। गांव को गांव नहीं रहने दिया। शहरों पर दबाव इतना बढ़ा दिया है कि वहां सांस लेना कठिन हो गया है। क्या हम गांव को फिर से जिंदा कर पायेंगे? वैसे ही स्वरूप में, जैसा छोड़ कर आये थे शहर।

5 comments:

Udan Tashtari said...

वो स्वरुप तो शायद अब कभी न मिल पाये-हालातों से समझौता करना होगा-बुरा समय भी गुजर ही जाता है.

संगीता पुरी said...

बहुत सही लिखा.....बहुत शोचनीय हालत है गांवों की.....शायद ही इसमें सुधार हो पाए।

कुश said...

सही सवाल उठाया है आपने.. जवाब शायद ही मिले..

Gyan Dutt Pandey said...

गांव रहे नहीं, शहर बने नहीं - भीषण संक्रमण काल है!

prabhat gopal said...

thanks to all for good comments

Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

अमर उजाला में लेख..

अमर उजाला में लेख..

हमारे ब्लाग का जिक्र रविश जी की ब्लाग वार्ता में

क्या बात है हुजूर!

Blog Archive