आज जब ज्ञानदत्त सर के ब्लॉग पर गया, तो सुखद आश्चयॆ साथ लिये लौटा।
उनसे कभी मिला नहीं, कभी कोई बात नहीं हुई। लेकिन टिप्पणियों या पोस्टों की भीड़ में खंगाल कर उन्हें पढ़ना और गुनना आदत में शुमार कर चुका हूं। वैसे मैं पोस्टों पर व्यक्तिवादी प्रशंसा या आलोचना का ज्यादा हिमायती नहीं। लेकिन कंकड़ में से मोती चुननेवाले महारथियों के बारे में बताना भी उतना ही महत्वपूणॆ है।
महज एक टिप्पणी और सुझाव पर अमल करते हुए ज्ञानदत्त जी ने अपने ब्लाग के ले-आउट में परिर्वतन करते हुए उसे सहज, सुगम्य और सादगी से युक्त कर दिया है। पुराने स्टाइल और वतॆमान ब्लाग के स्टाइल में जमीन-आसमान का फर्क नजर आता है। यहां गौर करनेवाली बात सकारात्मक सुझावों पर अमल लाने की है। किसी भी महत्वपूर्ण सुझाव को ये कितनी गंभीरता से लेते हैं, ये उनके इसी प्रयास से पता चल गया है।
हाइलाइट होने के लिए जब लोग ब्लाग को भारी भरकम बनाते हैं (शायद मैं भी), तो उसमें सादगी की ओर पहल सिर्फ पाठक तक पहुंचने के लिए प्रशंसनीय है। पाठकों से तारतम्यता स्थापित करने की उनकी कोशिश सचमुच प्रशंसनीय हैं। एक बड़े ब्लागर के रूप में तो उनका जवाब भी नहीं है। यहां बताने की सिफॆ ये कोशिश है कि जब आज की दुनिया में स्टारडम और भीड़ जुटाने की जद्दोजहद है, तो एक शख्स कैसे खुद सादगी की ओर मुड़ने का प्रयास कर रहा है। ज्ञान सर की पहल अनुकरणीय है।
ज्ञानदत्त सर को इसके लिए बधाई।
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6 comments:
जानकारी के लिये आपका आभार.
रामराम.
tau ko bhi namaskar
ज्ञानदत्त जी तो खैर अनुकरणीय हैं ही और उनके इस कदम नें मेरी इस सोच को और पुख्ता किया है.
ज्ञानदत्त जी अनुकरणीय तो हैं ही, पर ब्लॉग के ले आउट में तो कोई चेंज नहीं दिख रहा है. पिछले क़रीब 3-4 महीने से तो मैं इसे जस-का-तस ही देख रहा हूं.
बस जी, हर बात से पोस्ट दुह लेने का काम करते हैं मिस्टर ज्ञानदत्त! :)
इस आलेख के लिये आभार. अभी देखता हूँ कि ज्ञान जी ने क्या किया है.
सस्नेह -- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
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