Sunday, March 1, 2009

सज गया है बोर्ड एग्जाम का बाजार


बोर्ड का एग्जाम क्या आया, पूरा बाजार सा सज गया है। डॉक्टर टेंशन कम करने की सलाह देते हैं। पंडित जी ग्रह, नक्षत्र और रंग के बारे में बताते हैं। कोई दुआ या उपवास की सलाह देता है। सालभर पढ़ाई करनेवाले का आत्मविश्वास भी इतनी सलाहों को सुनने के बाद डोलना निश्चित है।

अब इस पूरी प्रक्रिया को सिस्टम को दोष कहें या खुद हमारे द्वारा बनाये गये माहौल को। क्या हम लोगों ने बोर्ड की परीक्षा को लेकर बाजार नहीं सजा दिया है।

आओ-आओ ये ले लो, ये ताबिज, ये हरा रंग, ये जादुई रूमाल, ये जादु की लकड़ी, न जाने क्या-क्या। कहते हैं कि बिजनेस करनेवाले मिट्टी को भी बेचकर सोना कमा लेते हैं। बोर्ड एग्जाम को लेकर बनाये गये बाजार को देखकर ये सच भी लगने लगता है।

कल तक जिन भविष्यवक्ताओं को कोई पूछता नहीं था, आज उनकी पूछ बढ़ गयी है। जिन डॉक्टरों के पास लोग जाने से डरते हैं, वे टेंशन कम करने के उपाय बताते हैं। हमारा मन पूछता है कि बच्चों को ऐसी सिस्टम वाली मशीन में डालने से क्या फायदा, जहां २० फीसदी बच्चे तो उस मशीन से जूझकर निकल जायेंगे, लेकिन शेष ८० फीसदी बच्चे जिंदगी भर बोर्ड एग्जाम की टीस लिये जीते रहेंगे। व्यावहारिक जीवन में वर्तमान शिक्षा पद्धति कितना योगदान दे पाती है। लोग बोर्ड एग्जाम देकर निकलने के बाद व्यावहारिक जीवन से जूझने के लिए कितनी तैयारियां कर पाते हैं।

आजादी के ६० साल गुजर गये, लेकिन आज तक हमारा थिंक टैंक इस समस्या का हल नहीं निकाल पाया है। बोर्ड एग्जाम और उसके बाद रिजल्ट के दिन तक न जाने कितने विद्यार्थी तनाव में आकर जिंदगी को दांव पर लगा देते हैं।

ऐसी शिक्षा प्रणाली का क्या लाभ? ये सवाल हर साल उठता है, लेकिन मार्च के बाद प्रतियोगिता की अंधी शोर में दबकर रह जाता है।

लेकिन सोचना तो होगा ही, आज नहीं तो कल।

7 comments:

Alpana Verma said...

यह सच में विचारणीय विषय है..लेकिन पहले के समय की तुलना में हाल ही में किये गए कुछ परिवर्तन CBSE[शिक्षा बोर्ड द्वारा]सराहनीय हैं.

धीरे धीरे hi परिवर्तन हो पाएग.

अनिल कान्त said...

सही बात कही ....लेकिन छात्रों में टेंशन तो रहती है ...इससे इनकार नहीं किया जा सकता ....


मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Manish Kumar said...

जादू की लकड़ी अरे भाई ये कहाँ मिल रही है। एक आध हम भी खरीद लाएँ :)
दरअसल समस्या ये है कि इस सिस्टम का बेहतर विकल्प हमारे शिक्षाविद ढूँढ नहीं पाए हैं।

Udan Tashtari said...

चिचारनीय तथ्य है. सजने दो आप तो.

अभिषेक मिश्र said...

कल तक सोचने में कहीं देर न हो जाये !

Gyan Dutt Pandey said...

आज सवेरे मॉर्निंग वाक के समय दो छात्रों को हनुमान जी की दण्डवत में देखा था। उनकी शक्ल के अनुसार लगता था कि बजरंगबली की स्पेशल अनुकम्पा लगेगी उनकी नैया पार कराने में। नकल का जुगाड़ हो तो बेहतर! :)

संगीता पुरी said...

अन्‍य बोर्ड परीक्षाओं की तुलना में सी बी एस ई ने तो परीक्षाओं को बहुत आसान बना दिया है ... अब बच्‍चे पढाई बिल्‍कुल नहीं करेंगे तो क्‍या किया जाए।

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