चुनाव का मौसम आ रहा है। सतरंगी छटा के साथ शानदार बतकही का दौर जारी है। सुना है आडवाणी जी युवाओं को जीतने के बाद दस हजार में लैपटॉप देंगे। क्या हम युवा सिर्फ लैपटॉप के वादे से मन बदल लें या एक अभूतपूर्व फैसला ले लें आडवाणी जी को जिताने का? उधर कांग्रेस भी भाजपा के पिछले चुनाव के साइनिंग इंडिया के स्लोगन की तरह जय हो का स्लोगन लेकर मैदान में उतरी है। मामला वही है, सिर्फ चेहरा बदल गया है।
हमारा प्रश्न सिर्फ इतना है कि
ये पार्टियां देश में इन मुद्दों को लेकर क्या कर रही हैं --
आम आदमी को रोजगारपरक और बुनियादी शिक्षा देने का आसान रास्ता बनाने की पहल - हमारे देश और राज्य में सरकारी शिक्षा बदहाल है। रोज निजी स्कूलों में फीस बढ़ने की बात को लेकर बवाल हो रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है, जो हर मध्यवर्गीय परिवार को प्रभावित कर रहा है। सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की व्यवस्था को मजबूत करने को लेकर आम दलों का क्या विजन है? इस पर उन्हें अपनी बातें साफ करनी चाहिए।
स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल - स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाल व्यवस्था को दूर करने के लिए कैसी और क्या ठोस पहल होगी? आज तक जिला और प्रखंड स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य सेवा सपना ही बनी रह गयी है। कहीं मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में में प्रोफेसरों और बेहतर स्वास्थ्य सेवा की कमी है, तो कहीं स्वास्थ्य केंद्र मात्र नाम के लिए हैं।
सड़क, पानी की सुविधा मुहैया कराने को लेकर क्या कदम उठाये जायेंगे- नदियों के जल संरक्षण, शहरों और गांवों में जलापूर्ति व्यवस्था, प्रदूषण नियंत्रण जैसी बातों को लेकर दलों की क्या विशेष योजना है। देश के बड़े शहर जनसंख्या के दबाव के आगे झुकते जा रहे हैं। आखिर पूरे देश में सड़क और पानी को लेकर क्या ठोस योजना तैयार की जायेगी या है। इस पर दलों को पूरी बात साफगोई से रखनी चाहिए।
मंदी के दुष्प्रभाव से बचाने के उपाय - उदारीकरण के नाम पर अंधी खाई बनाने की जगह, एक बेहतर और स्थायी व्यवस्था के निर्माण के लिए दल क्या कर रहे हैं। अब तक जो हुआ बहुत हुआ। पूरे देश को कॉरपोरेट व्यवस्था के भरोसे आम जनता नहीं छोड़ सकती है। महंगाई दर नियंत्रण के समय सरकार असहाय नहर आती है। बेरोजगार हो रहे युवकों की नौकरी बचाने के नाम पर सरकार असहाय नजर आती है।
सवाल ये है कि जब आम जनता द्वारा चुनी गयी सरकार ही नियंत्रण स्थापित करने में असहाय नजर आती है, तो ऐसी सरकार के रहने का क्या मतलब है। दलों को ये साफ करना होगा कि वे हमारे लिये ऐसी अव्यवस्था को दूरकर ठोस व्यवस्था का निर्माण कैसे करेंगे?
ये सवाल काफी कुछ कह जाते हैं। चिकनी बातों से ब्रेनवाश करने का दिन बीत चला।
ये दल बतायें कि इनके पास ठोस रणनीति क्या है? अगर आडवाणी करोड़ों का रोजगार देने की बात करते हैं, तो बतायें कि ये काम वे कैसे करेंगे। एक ठोस व्यवस्था का निर्माण कैसे करेंगे। जहां कॉरपोरेट दुनिया के आगे सरकार झुकती नजर नहीं आयेगी। सिर्फ फायदे के नाम पर लाखों लोगों की पेट पर लात मारने का अभियान कैसे रोका जायेगा।
इस देश की जनता को बेहतर और स्थायी व्यवस्था चाहिए। गैर मुद्दों पर बहस और व्यक्तिगत छिछालेदार से ऊपर उठकर हर दल को इन सवालों को जवाब देना होगा।
Saturday, March 14, 2009
दल इन सवालों का जवाब दें, चिकनी बातों से ब्रेनवाश करने का दिन बीत चला। चुनावी दंगल-१
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5 comments:
इस चुनाव में आम समस्याओं की कोई बात ही नहीं कर रहे हैं ... कोई लैपटाप उपलब्ध कराएंगे तो कोई मोबाइल ... मानो रोटी , कपडा और मकान से जरूरी हो गये हैं अब लैपटाप और मोबाइल।
in April to May...great laughter election tamasha....
thts....true..
आप जितने सवाल चाहें दाग लें, आखिर कुत्ते का भी एक दिन होता है ना[EVEN A DOG HAS HIS OWN DAY] और हम[नेता] बडी शालीनता और गम्भीरता से आप के आरोप भी सहन कर लेंगे और प्रश्न भी। आखिर हमें आप लोग पांच साल बर्दाश्त करते हैं तो क्या हम आपको एक दिन बर्दाश्त नहीं कर सकते!???????
चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी वैसे तो इस ब्लॉग का मैं संचालक नहीं हूं लेकिन टिप्पणी तो दे ही सकता हूं। जहां तक आपने कहा-
आखिर हमें आप लोग पांच साल बर्दाश्त करते हैं तो क्या हम आपको एक दिन बर्दाश्त नहीं कर सकते!???????
तो मुझे एक लाइन याद आ गई, किसने कहा है यह याद नहीं आ रहा है, जरा गौर फरमाइए - जिंदा कौम कभी भी पांच साल का इंतजार नहीं करती है।
शायद आप समझ गए होंगे।
Girindra jee,
Zinda Kaum, aap kiski baat karte hai. Yeh chunav paiso ka khel hai aur yah public paise ko bhagwan manti hai....
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