Thursday, March 26, 2009

जवाब चाहिए, ब्लागिंग बेमकसद का काम या और कुछ

हम कभी-कभी किसी चीज को यूं ही क्यों करते हैं। जैसे कि ब्लागिंग। जो कुछ चाहा, लिखा मनमाफिक। इसमें बहुतेरे लोग एक सवाल जरूर करते हैं कि आपको क्या इसमें पैसा मिलता है? जवाब रहता है-नहीं। लेकिन ये सवाल कुछ सोचने के लिए विवश करता है कि कोई भी कार्य हम यूं ही क्यों करते हैं? क्या बेमकसद लगने वाला काम शौक से इतर कुछ नहीं कहा जा सकता है। धीरे-धीरे कोई भी कार्य ही बड़ा स्वरूप अख्तियार ही कर लेता है। अब मामला फेसबुक को ही लें। यहां लोग आते हैं, दीवार पर अपनी सोच टांग आगे चल देते हैं। जिन्हें पसंद या नापसंद आता है, वे अपने शब्दों को उकेर कर भावनाएं व्यक्त कर जाते हैं। यहां भी दोस्ती लोग बेमकसद यानी बिना किसी स्वार्थ के करते दिखते हैं। कोई मुंबई में हो या दिल्ली में, हमें काम देगा या हमारी मदद करेगा या नहीं, ये हम नहीं सोचते। हमें सिर्फ ये अच्छा लगता है कि किसी व्यक्ति विशेष ने हमारी दोस्ती स्वीकार कर ली है। काल क्रम में कुछ फायदा या नुकसान हो जाये, तो अलग बात है। लेकिन ये सवाल अहम है कि बेमकसद का काम जिंदगी में क्या कोई मायने रखता है। हमारे हिसाब से जिंदगी को इससे कोई खासा नुकसान नहीं पहुंचता। हां, आपके समय का एक बड़ा भाग खुद ब खुद नियोजित होता चला जाता है। क्योंकि आप सकारात्मक हो या नकारात्मक, थोड़ा, थोड़ा कर देते हैं समाज, दोस्त या अपने आपको। और आपका व्यक्तित्व पूर्णता की ओर बढ़ता रहता है। ये एक ऐसी प्रक्रिया है, जो चलती रहती है। इसका कोई अंत नहीं है। काफी सोचने के बाद इस सवाल को जानने के लिए मंथन किया। कुछ हाथ नहीं लगा, सिवाय इसके कि अपनी भावनाओं को टिपिया कर मन शांत कर लूं।
चलिये फिर अगली बार...

8 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

चलिए जी, हमने माना कि हम फालतू हैं और बेमतलब टाइप के काम ही करते हैं. उन्हीं में से एक ये ब्लॉगिंग भी है.

Ashok Pandey said...

मैं ब्‍लॉगिंग को बेमकसद बिल्‍कुल नहीं मानता। मेरी निगाह में यह विचारों का मेला है। मेले में लोग अपने सामान लेकर आते हैं, नुमाइश करते हैं और जिन्‍हें पसंद आता है वे उन्‍हें ले लेते हैं। उसी तरह ब्‍लॉगिंग में दुनिया भर के लोग हर रोज अपने विचार ओर जानकारियां लेकर आते हैं। विचारों के इस मेले में हमारे पास बहुतेरे विकल्‍प होते हैं, हमें जो पसंद आता है उसे पढ़ते हैं और अपने भी विचार रखते हैं। इससे हमारे चिंतन को धार मिलती है और जानकारियों का विस्‍तार होता है।

संगीता पुरी said...

कोई भी काम बेमकसद का नहीं होता ... इस दुनिया में अपनी अपनी रूचि के अनुसार लोग काम करते हैं ...किसी को अच्‍छा लगे न लगे ।

Manish Kumar said...

पता नहीं आपके मन में ऍसे विचार क्यूँ आते हैं।:)

सोशल नेटवर्किंग साइट से कहीं ऊपर है चिट्ठाकारी की सार्थकता। खैर मैं अशोक पांडे की बात से सहमत हूँ।

mamta said...

ब्लॉगिंग के बारे मे कह सकते है कि ये बेमकसद तो नही है । बाकी facebook वगैरा के बारे मे नही कह सकते है क्योंकि कभी उधर का रुख किया ही नही ।

रंजू भाटिया said...

आपनी बात कहने सुनाने का अच्छा तरीका है ब्लागिंग

Archana Chaoji said...

मेरे लिए ब्लोगिंग बिलकुल भी बेमकसद नही---- ,बल्कि इससे मैने अपने आप को जाना-----जैसे पुराने समय मे हम किसी दोस्त या रिश्तेदार या परिचित के यहाँ शाम को थोडी देर घूमने के लिए चले जाते थे-----बतिया आते थे -----अब तो किसी का टाइम मैच नहीं होता कोई सुबह खाली होता है तो कोई शाम को----तो यहाँ आकर ऐसा लगता है किसी से मिल कर आ रहे हों

Archana Chaoji said...
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