एक व्यक्ति द्वारा अति उग्र बयान देना। वह भी ऐन चुनाव के पहले। फिर उस पर प्रतिक्रियाओं का नहीं थमनेवाला दौर। मीडिया का उसे लेकर लगातार मंथन करना।
ये सारे परिदृश्य हम-आप देख रहे हैं। बेवकूफ बन रहे हैं। मन त्राहि-त्राहि कर रहा है। न इन दलों को रोटी से मतलब है, न बढ़ती महंगाई से। तमाशा हो रहा है-तुम हमारी औकात बताओ, हम तुम्हारी औकात बतायेंगे।
मुझसे एक बार एक व्यक्ति ने पूछा था-ये औकात क्या चीज होती है, पता नहीं। जिंदगीभर तलाशता रहा, पर मिली नहीं।
यहां भी वही चीज है, हर दल दूसरे को औकात बता रहा है। इस बेवकूफी भरे हंगामे का मूकदर्शक और कोई नहीं,बल्कि मतदाता है। जो व्यर्थ होते जा रहे इस अमूल्य समय को चुपचाप बरबाद होता देख रहा है।
क्या कहें, इस मामले को लेकर। क्या मतदाता, उग्र और भावनाओं को भड़कानेवाले डायलाग को सुनकर अपने फैसले आपके हवाले कर दे?
यही हाल आज-कल इस ब्लाग जगत का भी लग रहा है। यहां भी कुछ तथाकथित लोग अपनी खिचड़ी पकाने के लिए किसी भी दूसरे व्यक्ति को औकात बताने से गुरेज नहीं करते।
ज्यादा लिखने की इच्छा नहीं...
वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए मन पानी-पानी हो रहा है।
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