Thursday, April 2, 2009

क्या दूसरा व्यक्ति मुझे मेरे व्यक्तिगत धर्म के बारे में बतायेगा?

धर्म को लेकर मचे बवाल के बीच एक सवाल बार-बार पूछता हूं कि खुद मेरे लिये धर्म के क्या मायने हैं? मंदिर-मसजिद विवाद से लेकर आज तक धर्म के सच्चे अर्थ की तलाश कर रहा हूं। मन बेचैन होकर संन्यासियों की बातें शांति की तलाश में सुनता है। लेकिन उनके उपदेशात्मक बातें गले से नहीं उतरतीं।

तीन चीजें स्पष्ट हैं, गलत मत देखो, गलत मत करो और गलत मत सुनो।

हम व्यक्तिगत जीवन में तीनों ही चीजों को नकारते हैं। मैं तो ये मानता हूं कि ऊपरवाले से जुड़ी हरेक चीज धर्म है। सही और सकारात्मक जीवन की तलाश में जीवन गुजर जाता है। लेकिन अगली पीढ़ी फिर वही धर्म पर बहस करती नजर आती है।

एक रिक्शेवाले से उसका धर्म पूछिये। वह आपको अपने जीवन के संघर्षों के बारे में बतायेगा। दुख से भरी जिंदगी की कहानी से आप रूबरू होंगे। अस्पतालों में बीमार लोगों का हाल जानिये, तो आप उनके दर्द को समेट नहीं सकेंगे। एक डॉक्टर उनकी सेवा करता है और वही उसका सबसे बड़ा धर्म होता है। पत्रकार होकर चीजों को सही नजरिये से पेश करना मेरे लिए धर्म है। एक पड़ोसी होने के नेता बगलवाले व्यक्ति की कठिनाइयों में मदद करना मेरा धर्म है।

धर्म को आस्था से जोड़कर देखने पर ईश्वर का हमेशा भान होता है। कठिनाइयों में ईश्वर से राह दिखलाने की गुजारिश करता हूं। वह चाहे किसी भी रूप में हों, साईं बाबा, राम या ऊपरवाले। इन सब बातों के बाद दलों द्वारा मुझे जब संस्कृति की पाठ पढ़ाने की बात याद आती है, तो एक विरोधाभास उत्पन्न होता है कि क्या दूसरा व्यक्ति मुझे मेरे व्यक्तिगत धर्म के बारे में बतायेगा? ये मेरी इच्छा है कि मैं किसकी पूजा करूं। ये मेरा व्यक्तिगत अधिकार है।

धर्म, विरासत को लेकर की जा रही बहसें हर वर्ग को दोराहे पर खड़ा करती हैं। मैं अगर किसी धर्म की बात करता हूं और दूसरे को उसके लिए प्रेरणा स्रोत बनाने की कोशिश करता हूं, तो ये मेरी दृष्टि से गलत होगा। मेरी दृष्टि में धर्म चुनना हर किसी का व्यक्तिगत अधिकार है। आप किसे माने या न माने, ये उसकी अपनी चीज है। राष्ट्रीय और व्यक्तिगत जीवन स्तर पर लोगों को कर्म करने के लिए प्रेरित करना सबसे बड़ा धर्म होगा। ये कोई नहीं कर रहा।

कर्म के लिए प्रेरित करते धर्म ग्रंथों की वाणियों का उल्लेख कोई नहीं करता।

धर्म को आस्था से जोड़कर देखने पर ईश्वर का हमेशा भान होता है। कठिनाइयों में ईश्वर से राह दिखलाने की गुजारिश करता हूं। वह चाहे किसी भी रूप में हों, साईं बाबा, राम या ऊपरवाले।

विवेकानंद का कहना था कि मुझे मैदानों में फुटबॉल खेलते स्वस्थ युवा चाहिए, न कि कमजोर और इच्छाशक्ति से रहित। मैं विवेकानंद नहीं बन सकता और न उनका स्थान ले सकता हूं। लेकिन स्वस्थ मानसिकता के साथ जिरह को रखने की कोशिश की बात कहना चाहता हूं। दुख होता है, जब भटके मन और अधूरे ग्यान के सहारे दूसरे मुझे धर्म की व्याख्या समझाने की कोशिश करते हैं।

3 comments:

संगीता पुरी said...

सटीक !!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप से पूरी तरह सहमत। धर्म व्यक्तिगत चीज है। उस का समाज से कोई लेना देना नहीं। वह मित्रता-शत्रुता, उँच-नीच का आधार नहीं हो सकता। कर्म ही प्रमुख है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

कलर चैनल पर कृष्णा धारावाहिक का आज का ऐपीसोड देखें वह भी यही सिखा रहा है।

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