Friday, April 3, 2009

आखिर क्यों नहीं उठ रहा प्याले में तूफान?

फिल्मों के पुराने स्क्रिप्ट की तरह भाजपा का राग अलापना और कांग्रेस का हम सही है, हम सही हैं, लगातार कहना चुनाव के मजे को किरकिरा कर दे रहा है। मन इस चुनाव के विश्लेषण के लिए मायने और कोण खोजता है। लेकिन सड़ चुके जड़ों में जीवंतता तलाशना मूर्खता का काम लगता है। दलों में मुद्दों का अभाव है। कोई ऐसी लहर नहीं दिख रही, जिस पर सवार होकर कोई दल इस चुनावी बेड़ा को पार करे।
भारतीय राजनीति की इस विडंबना को कोई राजनेता स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है। इस बार न तो फिल्मी सितारों का वैसा आकर्षण नजर आ रहा है और न ही प्रमुख नेताओं का। बार-बार मुसीबत के थपेड़ों से परेशान होकर इस बार जनता हार माननेवाली स्थिति में दिख रही है। मीडिया जरूर हवा बनाने की कोशिश में है। लेकिन उसके बाद भी वैसा कोई तूफान या सरगरमी राष्ट्रीय या स्थानीय स्तर पर नहीं दिख रही है, जैसी होनी चाहिए। ऐसा क्यों और कैसे हो गया, इसका विश्लेषण करने के लिए कई कोणों से सोचा, तो एक बात जरूर समझ में आयी कि अब सभी लोग दलों के भुलावे में डालनेवाला खेल समझने लगे हैं।
इसलिए इस बार न तो हिन्दुवाद का नारा काम दे रहा है और न ही धर्म निरपेक्षता का।
हम मंथन करें या न करें, लेकिन राजनीतिक विरोधाभास की इस स्थिति को हमारे नेता भी समझ रहे हैं। ये पूरी प्रक्रिया इस बात की संकेत कर रही है कि देश की जनता वर्तमान राजनीति से ऊब चुकी है। उसे स्वस्थ मानसिकता की राजनीति चाहिए। शायद इस बार की ये उदासीनता यही बता रही है।

3 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

मन्दी के समय में थका हुआ चुनाव है यह!

sandeep sharma said...

राजनीति में सब जायज....

Anonymous said...

लोकतंत्र बेहतर है पर लोकतंत्र के ऐसे रूप में मेरी कोई आस्था नहीं है .मुझे विश्वास है कि आगे का ५ साल और बद्तर गुजरने वाला है क्योकि इस बार राजनीति में पहले से भी जादा कूड़े प्रवेश कर रहे हैं . भ्रष्टाचार अब एक संस्कार बनता जा रहा है और इसे हमारे जीवन के अंग के रूप में स्वीकृति मिलती जा रही है .रोज नए-नए और पहले से अधिक गिरे स्तर का नंगापन देखने को मिल रहा है .
बर्बाद देश में पैसे वाले अफसर और नेता स्विस बैंक में जमा पैसों से फोरेन में सेटल होंगे गरीब लोग यहीं मरेंगे .बढ़ते income disparity ,असंतोष और महाशक्तियों को तोड़ देने वाला विघटनकारी मुजहिदीनी आतंकवाद किसी के ध्यान में है कि नहीं पता नहीं पर सबका ध्यान कुर्सी,जोड़-तोड़ ,धर्म-जात ,मंदिर-मस्जिद ,लूटखसोट ,मुद्रास्फीति की बनावटी सांकेतिक आंकडो को कम करने और स्टॉक मार्केट फूलाने में है . सुना है अब तो आतंकवादियों ने संसद तक पहुँच बना लिया है .असाम के लोग घुसपैठियों से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं .गरीबों की थाली से एक एक कर गायब होता अनाज और दाल को कोई नहीं देख रहा .मध्याह्न भोजन में सिर्फ घटिया और रंगीन पीली खिचरी खाते खोखले होते देश के भविष्य की ओर किसी की नज़र नहीं .बस अपना झोला भरते रहो जिसको जहाँ से मिले लूटो.अपनी सुरक्षा के लिए राजदूत खरीदो और जनता को दाव पर लगे रहने दो और शांति समझौता कर एक्सपेरिमेंट करो .

system के स्वतः सुधरने का ६०साल का इन्तजार काफी लम्बा रहा और आगे आशाजनक स्थिति की कोई तस्वीर बनती नहीं दिख रही. यही स्थिति रही तो हमारे नेता हमारे लोकतंत्र को पाकिस्तान वाले स्थिति में ठेलकर भगवान भरोसे छोड़ देंगे .

जबतक मतदान में none of these का विकल्प नहीं होगा या राजनीती के गन्दगी की सफाई नहीं की कोई सूरत नहीं दिखेगी ये पप्पू तो पप्पुओं को वोट नहीं देने वाला भले ही वोट नहीं करना पड़े .

Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

अमर उजाला में लेख..

अमर उजाला में लेख..

हमारे ब्लाग का जिक्र रविश जी की ब्लाग वार्ता में

क्या बात है हुजूर!

Blog Archive