इस बार नेताओं के चेहरे पर से हंसी गायब है। कहीं कोई ये दमभर कर नहीं कह रहा कि इस बार हम बाजी मार लेंगे। यहां तक कि बड़े-बड़े नेता खुद पत्रकारों से सवाल कर रहे हैं कि क्या समीकरण है? क्या वाकई में वोटर चालू हो गया है या इतने दल हो गये हैं कि गणित का हल निकालना मुश्किल हो गया है। क्या होगा, क्या नहीं, इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। हमारा मन भी भावना से भर उठता है। बार-बार पूछता है कि इस देश की जनता ने इस बार ऐसा कन्फ्यूजन क्यों पैदा किया। इस बार कौन बाजी मारेगा? इसे लेकर सवाल दर सवाल हैं। लेकिन सरकार में रहनेवाली खास पार्टी कमजोर होती दिख रही है। या दूसरी विपक्षी पार्टी ने मीडिया को हाइजैक कर लिया है। क्या मामला है? लोग इसे इस बार एक अप्रत्याशित रिजल्ट की बात कह रहे हैं।
जब लालू कांग्रेस को भी बाबरी मसजिद के लिए दोषी ठहरा रहे हों
चौथे मोरचे का परिदृश्य दूर-दूर तक नहीं आ रहा हो
कांग्रेस हर मोरचे पर कमजोर दिखती हो
भाजपा की स्थिति दिन ब दिन मजबूत होती दिख रही हो
तो क्या सीन बन रहा है, सोचिये...
Monday, April 20, 2009
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4 comments:
बिल्कुल ठीक।
वोट माँगने के समय नेताजी हकलाय।
जूते की माला लिए कहीं भीड़ आ जाय।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
हंसी तो सबके चेहरे से गायब है - फिर नेता कैसे मजे कर सकते हैं! :)
मुद्दा चिंतन का है.. आखिर राजनीति किस दिशा में जा रही है??
अब सोचना समझना क्या!! समय आ ही गया है भई!
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