Saturday, May 2, 2009
अपना तो फंडा है, चुपचाप काम करते रहने का
मैं सोचता हूं कि हमारी जिंदगी में खुश होने के लिए क्या चाहिए? अच्छा भोजन, बेहतर कपड़े या खूब ढेर सारे दोस्त। काफी लोगों को दोस्त कई होते हैं, लेकिन वे खुश नहीं रहते, उनके पास शिकायतों को पुलिंदा होता है। वैसे में ज्यादा दोस्त होना या सामाजिक होना खुशी के लिए जरूरी नहीं लगता। खुश रहना, मस्त रहना, एक इबादत है, जिसके लिए लगातार खुद पर मेहनत करनी होती है। चाहे वह ब्लाग लेखन का मामला हो या खुद को तंदरुस्त रखने के लिए कसरत करने का। ये इबादत या प्रार्थना कई तरीकों से हो सकती है। उसके लिए किसी गुरु की आवश्यकता नहीं होती है। अपना तो फंडा है, चुपचाप काम करते रहने का, चाहे आफिस हो या ये ब्लाग।
हम चीजों को किस नजरिये से देखते हैं ये महत्वपूर्ण होता है। देखिये मैं ये लिख रहा, तो ज्यादातर लोगों को लग रहा होगा-अम्मा! यार ये तो खुद को बड़ा दार्शनिक मान रहा है। अक्ल है नहीं और चला है उपदेश देने। मन ही मन गरियाते हुए मेरे इस लेख को न जाने कितने लोग पढ़ते होंगे या फिर एक नजर मारकर आगे बढ़ जायेंगे।
अब इसके बाद हम अगर प्रगति ग्राफ सामने रखकर खुश होने की कोशिश करें, तो दुखी होंगे। क्योंकि हमारी अपेक्षा अगर पूरी नहीं हुई, तो हम काफी निराश होंगे। इसलिए खुशी के लिए शायद सबसे जरूरी अपेक्षा का त्याग है। खुद में मस्त रहिये और दूसरे लोगों को भी मस्त रहने दीजिये।
इसके लिए जरूरी है कि काम को पूरी एकाग्रता से किया जाये, मस्त होकर। अब शायद पल-पल को जीने के लिए हमें थोड़ा खुद प्रयत्न करना होगा।
खुश रहने के लिए सतत प्रयास जरूरी है। हम यही सोचते हैं।
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