इस बार तीन मई को बारिश की पहली फुहार के साथ तापमान छह डिग्री गिर गया। अच्छा लगा। ठंडक का अहसास। लेकिन इसके साथ ही ये भी अहसास हुआ कि कोसी की प्रलयंकारी बाढ़ आने के एक साल पूरे हो जायेंगे। कोसी क्षेत्र शायद आज तक आपदा के कहर से नहीं उबरा हो। मुंबई में बाढ़ की खबर के बाद हर साल ये खबर सामान्य होती चली गयी। वैसे ही शायद कोसी क्षेत्र में इस साल भी बरसाती पानी का कहर पिछले ढर्रे पर रहेगा या कुछ बदलाव रहेगा, ये देखना दिलचस्प होगा। नीतीश के शासन के लिए ये बरसात एक अग्निपरीक्षा होगी। कब क्या होगा, कोई नहीं जानता, लेकिन पुराने घाव की जगह नये घाव न बनें, इसके इंतजामात करने होंगे। ये एलेक्शन तो दावे-प्रतिदावे के बीच बीत गये। नीति निर्माताओं को सालभर दो चीजों के बारे में बातें करते कभी नहीं देखता।
पहला पानी का सुनियोजित इंतजाम पूरे देश में कैसे हो
दूसरा हर साल आनेवाले कहर से बचने के उपाय शुरू से कैसे किये जायें।
अंतिम समय में युद्धस्तर पर जान लगा देने की परंपरा है। क्या गलत है, क्या सही ये सभी जानते हैं। अब बस समय का इंतजार कर हालात के निपटने के तरीकों के बारे में सोचिये। क्या ऐसा होगा?.
Monday, May 4, 2009
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2 comments:
तब तक प्रधान मन्त्री न बन जायें ये!
आपके विचारों से शत-प्रतिशत सहमत.. आभार
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