Tuesday, May 26, 2009
आखिर आइआइटी के ख्वाब तले पसरा अंधेरा कब जगमगायेगा
हर साल आइआइटी पास करनेवाले बच्चों की संख्या रांची से अच्छी-खासी होती है। मन खुश होता है और गर्व भी होता है कि हमारा शहर इतने प्रतिभावान बच्चों से अटा पड़ा है। लेकिन अगले ही पल उन बच गये हजारों बच्चों के बारे में भी सोचता है, जिनके लिए शिक्षा के मौके सिमट गये रहते हैं। एजुकेशन इंफ्रास्ट्रक्टचर के नाम पर झारखंड और बिहार जैसे राज्य में कुछ नहीं है। साठ सालों से जनता को लुभावने नारों के साथ धोखा देने का काम किया जाता रहा है। इंटर के बाद हायर एजुकेशन के नाम पर इन दोनों राज्यों में संस्थानों की ऐसी कड़ी नहीं है कि जो लाखों छात्रों के बोझ को संभाल सके। वैसे भी सिर्फ डिग्री लेकर एक अदद नौकरी के लिए योग्यता ही हासिल होती है। ऐसे में उन हजारों युवाओं की ख्वाहिशें दम तोड़ती चली जाती हैं, जो कुछ करना चाहते हैं। सवाल ये है कि आज तक इन दोनों राज्यों में तकनीकी संस्थानों को खड़ा क्यों नहीं जा सका है। नीतीश बिहार में कुछ कर रहे हैं और करना चाहते हैं, ये नजर आता है। लेकिन यहां झारखंड में, ये भगवान भरोसे नजर आता है। दक्षिण के राज्यों में संस्थानों की कड़ी है, जहां इन्हीं राज्यों के छात्र शिक्षा ग्रहण नजर आते हैं। हजारों रुपये यहां के बाहर जाते हैं। जिनका उपयोग इन्हीं दो राज्यों में हो सकता है। लेकिन हालात ऐसे हैं कि सिर्फ सिर धुना जाये। आखिर आइआइटी के ख्वाब तले पसरा अंधेरा कब रौशनी से जगमगायेगा।.......?
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5 comments:
अच्छा मुद्दा लिया है/ सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिये.
बिल्कुल सही कहा .. उच्च शिक्षा के मामले में झारखंड में कोई व्यवस्था नहीं।
भाई, आपकी जैसी चिंता हमें मध्य प्रदेश के बारे में भी है लेकिन क्या किया जाए. ४०-४५ साल तक राज करने वाली सरकार अपनी नाकामियों का ठीकरा अगली विपक्षी सरकार के सर पर फोड़ देती है.
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सही बात है आपकी.
सरकार को इस और सोचने की ज़रुरत है.
समस्या तो है... दक्षिण जाने के अलावा, धुर्वा में क्लर्क की तयारी में जुटे और दूर-दूर तक परीक्षा देने जाने वाले दोस्तों की भी याद हो आई.
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