आज-कल बेटी के साथ ज्यादातर समय छोटा भीम, टॉम एंड जेरी और मुगली के कार्टून सीरियल देख रहा हूं। हिंदी में ये कार्टून तकनीक द्वारा भाषा को सहज और आसान बना देने के अनोखे उदाहरण हैं। बच्चों को उनकी भाषा में समझाने का इनमें अनोखा तरीका होता है। मजा आ जाता है, जब मुगली दुश्मनों की चालाकी को मात देते हुए जंगल में बादशाहत कायम करता है। जेरी की बदमाशियों में तेजी नजर आती है। शायद मन के चुलबुलेपन को बाहर करने का यह एक अनोखा जरिया हो सकता है।
न्यूज चैनलों पर जाने पर हमेशा जिस पेंचवाली दुनिया से दो-चार होना पड़ता है, वे दुनिया यहां आकर पीछे छूट जाती हैं। जिंदगी सरपट दौड़ती मालूम पड़ती है, बिना तनाव के। अपनी बेटी के साथ बैठकर मैं हमेशा उसके मनोभावों को पढ़ने की कोशिश करता हूं।
सोचता हूं कि कॉमिक्स की हमारी दुनिया कितनी पीछे छूट गयी है। न वह बिल्लू है, न चाचा चौधरी और न मैंड्रेक का जादू। तकनीक, तेज भागता समय, सबकुछ पूरी दुनिया को बदल दे रहा है। इंटरनेट भी समय के साथ आसान और सुलभ होता जा रहा है। आनेवाले समय में जब इंटरनेट पर चैनलों और खबरों की दुनिया को और आसान बना दिया जायेगा, तो ये टीवी की दुनिया भी पीछे छूटती नजर आयेगी।
इन सब चीजों में सिर्फ एक चीज नहीं छूट रही है, वह है दादी मां की लोरी। आज भी बेटी को सोते समय दादी मां की लोरी चाहिए। क्योंकि उसके बिना उसे नींद नही आती। मानवीय रिश्ते का यह अनूठा नहीं बदलनेवाला। भावना में बंधे मानव के लिए यह एक मजबूरी ही है। तकनीक भले ही जिंदगी को कितना बदल दे, लेकिन सहज रिश्तों की परिभाषा नहीं बदल सकता।
जिंदगी में मां-बेटे के रिश्ते नहीं बदल सकते। इन्हीं संदर्भों के बीच एक खबर आस्ट्रेलिया में नस्लभेद की घटना को लेकर भी है। ये मन दुखी करता है। रंग, धर्म और जाति के नाम पर बंटी हुई दुनिया क्या ऐसी ही चलती ही रहेगी। हम कितने भी सुधार के दावे क्यों करें, लेकिन हर पीढ़ी को इस बंटे गये समाज से रू-ब-रू होना ही पड़ता है।
शायद ऊपरवाले भगवान के लिए ये त्रासदी ही है कि उसकी बनायी ही दुनिया परफेक्ट नहीं है। उसने दुनिया बनाते समय भावना के नाम पर ऐसा रंग चढ़ाया कि पेंच और गणित की दुनिया में पूरे मानवीय संबंध लिपटाते चल गये। वैसे में उस कथित मैच्योर दुनिया से अलग बच्चों की दुनिया ज्यादा तनावमुक्त और अच्छी लगती है। मुझे उसमें एक नये रस का मजा मिलता है।
इसे आप तनाव भगाने का माध्यम कहें या कुछ और। सच कहें, तो उस कथित मैच्योर दुनिया से घिन्न सी लगती है। दूसरी ओर खबरनवीस हूं, तो उसमें बाद में डुबकी लगानी ही पड़ती है। शायद यही दुनियादारी है। वास्तविकता भी यही है, जिसका सबको सामना करना होगा।
Saturday, May 30, 2009
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2 comments:
jo bhee ho prabhaat jee wo duniya anokhee thee, beshak anokhee to aaj kee duniya bhee hai bachchon ke liye.. magar wo baat kahan...apne to bachpan yaad dila diya....
apne yug mein sabko anupam gyat hua apna pyala,
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