Wednesday, June 3, 2009

इ मोबाइलवा भी अब फालतू हो जायेगा का....

सुना है कि मोबाइल सेवा और सस्ती होगी। यानी दस पैसे में बात होगी। बातें करेंगे उतनी, जितनी आप चाहेंगे। खुलकर बातें करेंगे। हर कोई उतावला होगा बात करने को, कुछ दिन के लिए। लेकिन उसके बाद ये मोबाइल भी टॉफी के समान बेकार की चीज हो जायेगी, किसी कोने में पड़ी रहेगी। क्योंकि आदमी तंग होने लगेगा इस लटकन को लेकर। बाथरूम में जाने पर भी देखता हूं कि मोबाइल की घंटी बजती रहती है और लोग रिप्लाइ पर रिप्लाई देते रहते हैं। एक से एक रिंग टोन मिलते हैं। कभी मस्ती के, तो कभी उदासी के। मोबाइल ने जिंदगी बदल डाली है। लेकिन संबंधों को बिगाड़ा भी इसी ने है। तीन गज की दूरी पर भाई साहब रहते हैं, लेकिन मिलने के बदले मोबाइल पर हाल-चाल लेते हैं। धैर्य शब्द का मतलब जिंदगी से करीब-करीब दूर ही हो गया है। अगर गुस्सा आ गया, तो एक मिनट में मोबाइल पर बतिया अमुक व्यक्ति के प्रति शिकायत या भड़ास निकालना जरूरी हो जाता है। तकनीकी क्रांति ने फास्ट मूवमेंट को लाइफ में अनबैलेंस करने में बड़ा योगदान दिया है। वह भी क्या दिन थे, जब चिट्ठी के इंतजार में सारा गुस्सा निकल जाता था। और फिर वही पुरानी मिठास के साथ नये संबंध शुरू होते थे। अब मोबाइल से फेसबुक का इस्तेमाल करिये या टीवी देखिये, सारा कुछ मिलेगा। पल-पल दुनिया से कनेक्ट रहिये। ऐसा होगा, लेकिन ऐसा होने के साथ क्या आदमी का स्वभाव बदल पायेगा। जिसका शरीर और दिमाग इन फास्ट मूवमेंट के लिए नहीं बना है। ऐसी तकनीकी क्रांति जीवन को जरूर फास्ट बना सकती हैं और सूचनाओं के समुद्र को उड़ेल सकती हैं। लेकिन ये हमारे मन-मस्तिष्क के लिए डैमेजिंग है। डैमेजिंग है हमारे बनते रिश्तों के लिए के लिए। कुछ पलों की बातों के बाद ज्यादा बातें बेतुकी ही होंगी। जब बेतुकी और फालतू बातें होंगी, तो सत्यानाश ही होना है। वैसे सकारात्मक बातचीत को जिंदगी में जगह देनेवालों की संख्या कम ही रहती है। इसके साथ समाज में वैसे समीकरण भी बनेंगे, बिगड़ेंगे, जिसकी कल्पना करने से ही डर लगता है। हमारी प्राइवेसी को पलभर पर सार्वजनिक करने का डर सताता रहेगा। जो अब और ज्यादा बढ़ेगा। इसके साथ अब चिंतकों को भी नये तरीके इससे उत्पन्न होनेवाली समस्याओं के लिए इजाद करने होंगे। लेकिन मुश्किल ये है कि हमारी व्यवस्था इंटरनेट की पहली सीढ़ी को लांघने मे ही इतनी देर कर दी है कि उसे और आधुनिक होती जा रही (थ्री जी सेवा) मोबाइल सेवा तक पहुंच बनाने में न जाने कितना समय लगेगा। जो भी हो, देखना ये है कि पब्लिक के साथ पूरा सिस्टम कैसे इसके साथ हमकदम होकर चलता है।

3 comments:

Science Bloggers Association said...

ये तो समय ही बताएगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

लगता तो एइसन ही है

Manish Kumar said...

hmmm kuch had tak to sahi kah rahe hain aap par jinke liye mobile pe baat karna time pass nahin par kaam karne ki anivarya jaroorat ho unke liye shayad ye suvidha upyogi rahegi

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