Friday, June 5, 2009
जागो भाइयों जागो
पर्यावरण दिवस बीत चला। आप-हम आंसू बहाते हुए ब्लाग पर हरे रंग के किसी सिंबाल को लगाकर इतिश्री करते हुए कंप्यूटर को रात में स्विच आफ कर सोने चले जायेंगे। प्रकृति की रक्षा के लिए घड़ियाली आंसू बहाते हुए धरती के नाश में प्लास्टिक जैसी वस्तु का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर योगदान दे देंगे। ये कैसी दोहरी मानसिकता के आदमी हम हो गये हैं। जब गौरेये की चिंता करनी चाहिए, तो टॉमी कुत्ते के लिए हड्डी की तलाश कर रहे होते हैं। पेड़ों की अंधाधुंध होती कटाई को लेकर किसी को चिंता करते नहीं देखते हैं। और न ही केंद्र से लेकर राज्य तक में जंगलों और जानवरों की सुरक्षा के प्रति कोई दृढ़ इच्छाशक्ति ही मालूम पड़ती है। हाल की नेशनल पत्रिका की ताजा रपट में गुम होते बाघ को लेकर चिंता जतायी गयी है। साथ ही ये भी दिखाया गया है कि कैसे अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए कहानी दर कहानी गढ़ते चले जाते हैं। ये इस धरती की बदनसीबी है कि यहां पर मनुष्य ने जन्म लिया। जिसे इस धरती ने संजोया और बड़ा किया,वह खुद उसके आवरण को हौले-हौले खींचकर उसे नंगा कर रहा है। ये त्रासदी आदमी तब भी नहीं समझ रहा है, जब अंटार्कटिका जैसा बर्फीला प्रदेश भी सिमटता जा रहा है। हर साल बढ़ती गरमी हमें बेचैन बना दे रही है। क्या हम विकसित हुए हैं? या फिर फ्लैटों में गद्देदार सोफे पर बैठे-बैठे सिर्फ भाषणबाजी करना सीख गये हैं। जो भी हो, पर्यावरण दिवस के बहाने ये जान लेना होगा कि ये सिर्फ एक दिन की भाषणबाजी की चीज नहीं है। जागो भाइयों जागो
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
सर्व साधारण की जागरुकता से ही लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है। समयानुकुल आलेख।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आजकल इन दिवसों का इतना ही महत्त्व रह गया है..कल फिर कोई नया दिवस आ जायेगा...!पर्यावरण सरंक्षण तो निरंतर ध्यान में रखने योग्य बात है...
जियो मेरे लाल । फोटो तो बड़ा चैड़े से खिंचवाए हो । हमें पहचाने कि नहीं ! हमारा ब्लाग भी ब्लागवाणी पर है कोलाहल कभी नजर ए इनायत कीजिए हुजूर । घनश्याम बाबा को भी बताएं । बधाई!
Post a Comment