आप किसी से अपेक्षा करते हैं। वह आपकी अपेक्षाओं पर पूरा नहीं उतरता और आप दुखी हो जाते हैं। दुखी तो हम भी होते हैं। पहले खुद से ज्यादा अपेक्षा रहती थी। खुद को ज्यादा आंककर एक सीमा से पार पहुंचने की कोशिश होती रहती थी। लेकिन अब समय के क्रम में सबकुछ बदलता चला जा रहा है।
इसे आप नकारात्मक कहें या सकारात्मक, लेकिन अब वह अपेक्षा न खुद से और न औरों से रहती है। जो मिला, उसी में राम नाम जपते हुए चलते रहते हैं। कितना कष्ट होता है, जब कोई आपकी किसी बात को एक सिरे से नकार दे और आपके पास सिवाय उस पर चिल्लाने के अलावा कुछ न रहे।
मैं कई दोस्तों को जानता हूं, जो सिर्फ इसलिए परेशान रहते हैं कि फलां-फलां दोस्त से उनकी नहीं पटती। अरे यार, ये भी कोई रोने की चीज है। जिन्हें निभानी होगी, वे खुद चलकर और आकर निभाएंगे। जैसे मैं ये कभी अपेक्षा रखता हूं कि कोई महोदय मेरे ब्लाग पर आकर अपने सुनहरे हाथों से टिपियाएं। मत आइये, मत टिपियाइए, कौन अपेक्षा करता है। सिर्फ ये अपेक्षा रहती है कि कोई भी आये, तो वह अपनी नकारात्मक मानसिकता की छाप पर हम पर न डाले। हम तो जियो और जीने दो में विश्वास करते हैं।
मेरी मस्ती को मत तोड़ो
एक लकीर खींच उस पर बना अपना दायरा
हम चले जा रहे लगातार
अपनी किस्मत पर जितना चाहा रो लिये
लेकिन अब बस
हम नहीं चाहते कोई रूदन, कोई दखल
शांत, स्थिर और मौन क्रांति के वाहक बन
बस चाहते हैं अपनी बची यात्रा पूरी करना
इसमें किसी की दखल न हो
न हो कोई चुनौती
कम से कम अपनी ख्वाहिशों को
अपने स्तर पर
अमली जामा पहनाते हुए
बिना किसी अपेक्षा के
हम कर लें मौत की छुअन तक
शेष यात्रा
जिसके लिए अब सिर्फ ईश्वर से रहेगी दोस्ती
न होगा कोई दोस्त, न दुश्मन
न होगी कोई अपेक्षा, न रूदन
बस खुद से दोस्ती कर
खुद से साथ निभाते चले जाएंगे
अब आप इसे स्वार्थ कहें या और कुछ
बस यूं ही चलते जाएंगे
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Tuesday, June 16, 2009
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7 comments:
bahut badhiya post hai bhai
बेहतरीन पोस्ट:
बस खुद से दोस्ती कर
खुद से साथ निभाते चले जाएंगे
अब आप इसे स्वार्थ कहें या और कुछ
बस यूं ही चलते जाएंगे
-क्या सही कहा-यही समाधान है.
सही कहा आपने बिना परवाह किये अपना कर्म करते हुए चलते जाना ही ठीक है...वैसे भी कोई किसी का नहीं होता..सो अपेक्षा करना ..बेकार है...
कह तो सही रहे हैं सर।
अरे वाह झा जी ! आप तो कविता भी करने लगे ! मुबारक हो भाई ! बढ़िया शुरुआत है । कोलाहल पर आने पर अभिनंदन । अपना नंबरवा भी तो दें, कभी बतियाया जाए।
अरे वाह झा जी ! आप तो कविता भी करने लगे ! मुबारक हो भाई ! बढ़िया शुरुआत है । कोलाहल पर आने पर अभिनंदन । अपना नंबरवा भी तो दें, कभी बतियाया जाए।
पर हम तो जरूर टिपियायेंगे .......वह भी अपनी मन मर्जी से !!!!
चाहे आप टिपियायें या न टिपियायें!!!
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