Thursday, July 30, 2009

पहले भारतीयता को लाइये, हिन्दू, मुसलमान बाद में बनियेगा

एक स्वस्थ और सकारात्मक बहस की मंशा लेकर राहुल गांधी पर लेख लिखा। कमेंट्स का दौर आया। अच्छा लगा।
लेकिन मुहम्‍मद उमर कैरानवी साहब ने कमेंट्स में जो अपने ब्लाग का लिंक दिया, उस पर सुरेश जी (महाजाल) ने व्यंग्य (इसे व्यंग्य कहें या चिढ़ाना) कसा एक नोट छोड़ दिया। इससे भी ज्यादा एक भाई साहब ने तो पोस्ट ही डाल ली। लिंक भी दे दिया।

चलिये ये मान लिया कि आप लोग इस ब्लाग जगत के सबसे बड़े हितैषी हैं। ये भी मान लिया कि पूरे विश्व के ब्लाग जगत के पालनहार, नंबर वन के हकदार आप ही हैं। लेकिन ताज्जुब इस बात का है कि हिन्दी के ब्लाग जगत के लेखक कुछ भी लिखते समय धर्म की निगाहों से पूरे मुद्दे को देखने से बाज नहीं आते।

एक गीत है तु हिन्दू बनेगा, न मुसलमां बनेगा, इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा

भाई साहब, मित्रों, महानुभावों पहले इंसान तो बन जाइये। उस ऊपरवाले से खुद को बेहतर बनाने की दुआ तो मांगिये।
हमने ऊपर में एक पट्टी चलायी हुई है

यहां आइये,तो टिपियाइये, सिर्फ नकारात्मक शब्दों से बचें और सब मंजूर है।

लेकिन नकारात्मक टिप्पणियों की बाढ़ में पूरी बहस और मुद्दे को तिलांजलि देने का काम किया जा रहा है।

रही बात बुढ़ापे और युवा के बीच तुलना करने की, तो ये सोचिये की आप थोड़े समय के लिए सोचते हैं या लंबे अंतराल के लिए।

दिग्विजय सिंह या अन्य कोई भी नेता पूरे देश के सर्वमान्य की श्रेणी में नहीं आते। यहां ऐसा व्यक्ति चाहिए, जिसके पीछे पूरा देश चले। अब जरा हमें ऐसी किसी युवा नेता का नाम बताइये, जो राहुल के अलावा सहज रूप से आपका या हमारा ध्यान खींचता है।

रही बात देश की पॉलिसी पर बोलने की, तो उसके लिए समय है। अभी काफी कुछ है। आज-नहीं, तो कल राहुल बोलेंगे और बोलते भी हैं।

दूसरा सवाल कि सिर्फ विवाद कर ही लोकप्रियता पायी जा सकती है या ये दर्शाया जा सकता है कि आप ग्यानी हैं। सबसे बड़ी चीज है कि भारतीय जनता ने हर पार्टी को राज्य और देश में अलग-अलग मुकाम पर आजमा लिया है।
हम यहां स्पष्ट तौर पर कहना चाहेंगे कि हम किसी पार्टी विशेष के पैरोकार नहीं हैं। जो बात सही है, वह सही होगी। क्या इतने बड़े जनादेश के बाद भी ये कहेंगे कि भाजपा को ही देश की गद्दी मिलनी चाहिए? याद करिये भाजपा ने चुनाव के शुरू में कमजोर अभियान की शुरुआत की थी। सिर्फ आडवाणी को प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग बनाकर चुनाव लड़ा गया। अरुण जेटली का विवाद मत भूलियेगा।

चुनाव के बाद जो सिर फुटव्वल की स्थिति हुई, वह भी बिसारने की चीज नहीं है। यहां कहने का मतलब यही है कि सिर्फ सर पटक-पटक कर बात मनवाने की बात मत करिये। जो सही है, वह सही है। ये भी सही है कि राहुल के अलावा कोई युवा विकल्प देश में नजर नहीं आता।

हम राहुल के वंशवाद के मुद्दे से अलग होकर बहस करने की बात कर रहे हैं। यथार्थ के तौर पर ये देखने कि कांग्रेस को कौन ऐसी पार्टी नजर आती है, जो चुनौती दे सके। फिलहाल बलूचिस्तान के मुद्दे पर कांग्रेस जरूर बैकफुट पर नजर आती है। लेकिन ये सब चलता रहता है। बात भविष्य के आईने में पूरे मामले को देखने का है।

फिलहाल धर्म के मुद्दे को नेताओं के हवाले कर दीजिये। उन्हें बहस करने दें। यहां उन्हीं चीजों पर मंथन करें, जो लगे कि बहस का विषय हो सकती है।

किसी के व्यक्तिगत धार्मिक राय से हमारा कोई लेना-देना नहीं हैं।

पहले सच्चे भारतीय तो बनकर दिखाइये

हिन्दू, मुसलमान बाद में बनियेगा

13 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

आपकी बात ठीक है, लेकिन हर बार हिन्दुओं को ही उपदेश क्यों मिलते हैं मुस्लिमों से इसकी शुरूआत क्यों नहीं होती. हिन्दू तो सभी को सहन कर लेता है लेकिन मुस्लिमों को हिन्दू सहन करना क्यों नागवार होता है.

Mohammed Umar Kairanvi said...

भाई साहब मै, क्षमा चाहता हूँ, लेकिन इस ब्लाग का नाम भी तो देखिये गपशप, देख लिजिये मैं कमैंटस पर कमेंटस नहीं दे रहा, जबकि मेरा तन मन बेचैन हो रहा है, अब हमें शाबाशी दिजियेगा
एक बार फिर क्षमा

अनुनाद सिंह said...

पहले आप तर्क करना तो सीखिये। अपनी बात को दूसरों के मुंह में मत डालना तर्क नहीं है। जो स्पष्ट प्रश्न पूछा गया है उनके उत्तर कहाँ हैं?

क्या आपको पता है कि चमचागिरी इस देश का सबसे ब।दा शत्रु है। लोकतंत्र की वास्तविक परिभाषा आपको ज्ञात है? 'समानता' का अर्थ क्या होता है?

Unknown said...

चलिये झा साहब आप बहस को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं यह अच्छा है, मैंने तो अपनी टिप्पणी में कहीं भी हिन्दू-मुसलमान की बात नहीं की थी, लेकिन फ़िर भी आपने मुझे ही उपदेश दे दिया…। अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर… राहुल गाँधी को एक विशेष रणनीति और साँठगाँठ के तहत प्रोजेक्ट किया जा रहा है, यह तो कोई भी समझ सकता है। कांग्रेस में जब भी कोई गैर-गाँधी पनपने की कोशिश करता है तो उसे सड़क पर लाने में देर नहीं की जाती। शरद पवार और सीताराम केसरी जैसे इक्का-दुक्का हठी लोग होते हैं जो अपनी राजनैतिक पकड़ दिखा देते हैं, लेकिन बाकी के लोग अर्जुनसिंह या नारायणदत्त तिवारी जैसे होते हैं जो एक झटके में ही टूट जाते हैं और "परिवार" के शरणागत हो जाते हैं, या फ़िर कुछ माधवराव और पायलट जैसी गति को प्राप्त हो जाते हैं। मीडिया और सत्ता साथ में हो तो किसी को भी एक सशक्त उम्मीदवार बताया और बनाया जा सकता है। कोई विकल्प नहीं है इस राहुल को चुन लें यह तो कोई तर्क नहीं हुआ। मूल बात यह है कि विकल्प क्यों नहीं है, क्यों नहीं बनने दिया गया… आदि?

Saleem Khan said...

vedon aur puranon ko padhen apne aap sab samajh men aa jayega...

aan aan nahin... abhi meri baat ka jawaab mat dijiye... bus pahle aap kam se kam ek page vedon ya puranon k padhen fir meri baat ka jawaab dijiyega

Shiv said...

मुद्दे को पटरी पर लाना ज़रूरी था. आप ले आये. अब स्वस्थ बहस होगी.

Anonymous said...

ये सलीम सब हिन्दुओं को वेदों और पुरानों की और लौटने के लिए क्यों कहता है?
हम तो इसे घटिया कुरान को अच्छे से पढने की सलाह नहीं देते.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

इतना ही अन्तर धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता के बीच है. हिन्दू स्वयं ही हिन्दू की बात के आगे तर्क वितर्क करता है, लेकिन मुस्लिम अपने धर्म प्रचार के प्रति कैसे भी तर्क दें उसका विरोध कोई भी नहीं करता फिर चाहे वह तर्क कितने ही असंगत क्यों न हों

Unknown said...

शिवकुमार मिश्रा जी, आपकी उम्मीद स्वाहा होने की पूरी सम्भावना है, कोई स्वस्थ बहस होने की नहीं है… भाई लोग कुरान और इस्लाम पर ही अटके हुए हैं उससे आगे बढ़ना ही नहीं चाहते, तो कोई कैसे बहस करे? उन्हें देश की समस्याओं, कांग्रेस, बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई किसी पर बात नहीं करनी है… बस वेद पढ़ो-कुरान पढ़ो, ये अवतार-वो अवतार, हिन्दू-मुस्लिम, किस धर्मग्रन्थ में क्या लिखा है जैसी फ़िजूल की रट लगाये हुए हैं…। इस मुद्दे पर यह मेरी अन्तिम टिप्पणी है… और अन्य ब्लॉगरों से अनुरोध है कि वे इस प्रकार की बकवास बहस में उलझकर अपना समय खराब ना करें और न ही ऐसे ब्लॉग्स पर जायें, जिनका एक "खास एजेण्डा" है और जिनकी सुई एक ही जगह पर अटकी हुई है…

Mohammed Umar Kairanvi said...

देख लिया जनाब, जिससे बहस होती वह तो भाग लिये,
यहाँ अब चिपलूनकर महाराज तो आयेंगे नहीं उनके बिना बहस कहाँ से होगी, बात जब धर्म की पटरी पर आगई तो हम भी आगये जनाब अब आप क्षमा करे, कमेंटस पर कमेटस आवश्यक है, जरा इनके पीछे जाता हूँ और इन ज्ञानियों से पूछता हूँ कि जिस ग्रंथ का तुम नाम xकुरानx (कुरआन) तक सही नही लिख सकते उसके मानने वालों से किया खा के मुकाबला करोगे, भाईयों यह चिपलूनकर जो अब राजीव साहब पर कीचड उछाल रहा है, औरंगजेब के मामले हम इसे फेल कर चुके ऐसे ज्ञानीयों को आगे करो जो ग्रंथ का नाम तो सही लिख सकें,


मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध् मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्‍टा
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इस्लामिक पुस्तकों के अतिरिक्‍त छ अल्लाह के चैलेंज
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काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...

प्रभात जी,

आपकी बात सही है मैं आपकी बात से पुरी तरह सहमत हूं

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...

@ भारतीय नागरिक जी,

आप अपने नाम को खुद गलत साबित कर रहे हैं अगर आपको सिर्फ़ एक धर्म की हिमायत करनी है तो क्रप्या करके अपने "असली नाम" से करें!

भारतीय नागरिक का नाम क्यौं बदनाम कर रहें है!

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...

सुरेश चिपलुनकर जी,

ये बात मैं कहना नही चाहता था लेकिन कई जगह आपकी टिप्पणी पढने के बाद मैं ये बात कह रहा हूं...


"जब आपकी हर बात सिर्फ़ कांग्रेस की बुराई और कांग्रेस सरकार की कमियां गिनाते और भाजपा और संघ का राग गाते गाते खत्म होती है

तो जो लोग एक धर्म के प्रचार में लगे हुये है वो तो हर जगह वो तो उसी का प्रचार करेंगे।

ठीक उस तरह जिस तरह आप संघ और संघ की विचारधारा का प्रचार करते है।

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