हमारे घर की दीवार पर एक घड़ी है। याद नहीं, कब से टंगी है। अपनी जगह पर। टिक-टिक करती घड़ी जिंदगी के हर पल को संजोये चलती रहती है।
हम लोगों ने उसके रंग और रूप में कभी परिवर्तन की चेष्टा ही नहीं की। वह है भी कब से, शायद हमारे आठवीं कक्षा में होने के समय से। घड़ी के इतिहास को लेकर ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे। लेकिन अपनी घड़ी के साथ हमारा जो संबंध है, उसकी चर्चा जरूर करेंगे। उस घड़ी में पांच बजते हैं, तो पूरी दुनिया की घड़ी में पांच बजते हैं। यहां, तो कई बार ऐसा हुआ है कि बैटरी कमजोर हुई, तो घड़ी की सुई की टिक-टिक आधे-एक घंटे धीमी हो गयी और हम हो गये लेट। गये दफ्तर, तो पाया कि पहुंचे हैं लेट से। तब भी किसी तरह अपने आपको डांट से बचा लिया।
टीवी देखते, अखबार पढ़ते या कहीं जाते समय, आंखें उसी जगह खुद ब खुद उठ जाती हैं, टाइम जानने के लिए। जैसे वहां गणेश जी की तस्वीर हो, जिन्हें देखकर संकट टल जाते हों। एक बार उस घड़ी को जब मरम्मत के लिए दिया गया, तो लगता था कि घर का वह कोना जैसे उदास सा हो गया है। वहां कोई रौनक नहीं है। हमें साइलेंटली बाय-बाय करनेवाला कहीं चला गया।
इस अनूठे रिश्ते का अहसास जब-तब हो जाता है। इसके लिए हम क्या करें? वो घड़ी न तो बोल सकती है, जब कुछ राय दे सकती है। बस अपनी ड्यूटी कर ही है चुपचाप पिछले २० सालों से। इस अनोखे सफर की शुरुआत जिस दिन भी हुई हो, लेकिन इस एक वस्तु ने जिंदगी को कई मायने दिये। सोचने के लिए ऐसे कई मौके दिये, जहां से रास्ता खुलता दिखता है। घड़ी पर जाकर समय के तेज भागने का अहसास भी बखूबी होता है। ये तो पता चल ही जाता है कि समय कितनी तेजी से गुजर गया।
Friday, July 31, 2009
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3 comments:
कुछ चीजें हमेशा आपके साथ जुड़ी रहती हैं. यह भी आपके साथ हमेशा ही जुडी रहेगी.
Kuch choti-choti chijein jindagi se kafi gahrai se jud jati hain.
जिस तरह घडी की तीनो सुइयां एक ही खूटे से बंधी है, ठीक उसी प्रकार हमारी जिन्दगी के एक एक पल भी उस घडी से बंधे होते है ..............................
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