ब्लाग जगत में आकर
खुद को सौओं के बीच पाकर
भूल गया था कि मैं कौन हूं?
एक आवाज बनकर चाहा था मुस्कुराना
अपनी टिपियाऊं यंत्र से कुछ उपजाना
लेकिन एक दर्द बनकर बार-बार उभरता है
कोई कहीं से बार-बार पूछता है
क्यों टकराती हैं अहं की चट्टाने
नेस्तानाबूत कर देतीं पहचानें
कुछ रहम कुछ लोग क्यों नहीं करते
संबंधों को बनाते नहीं, तो बिगाड़ा क्यों करते
कभी अगर हमसे गलती हो जाये
तो बता दिया कीजिये
कभी राह दिखा दिया कीजिए
इससे आपका क्या जायेगा?
एक बेचारे ब्लागर गरीब का भला हो जायेगा।
Tuesday, August 18, 2009
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2 comments:
achhi rachna hai...mazedaar
शायद कुछ हो जाये.
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