भाजपा की चिंतन बैठक में भाजपा ने जसवंत सिहं को पार्टी से निकाल दिया। उनकी पुस्तक पर गुजरात में प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही ये निष्कर्ष पर निकाला कि हार के दो कारण रहे
पहला- नरेंद्र मोदी का दौरा और वरुण गांधी एपिसोड।
हमने उस समय जिन बातों की समीक्षा की, उसके हिसाब से ब्लाग जगत में भाजपा की नीतियों के समर्थकों ने एक तरह से जंग का ऐलान कर दिया था। छीजते जा रहे प्रभामंडल से परेशान होकर भाजपा नयी राह तलाश रही है। उसमें भाजपा अब भारतीय इतिहास में ऐसी पार्टी के तौर पर जानी जायेगी, जो ऊपर से नीचे की ओर आने की कहानी को बखूबी बयां करती है। अगर भाजपा के नेताओं ने शासनकाल के दौरान अवसरवादिता की राजनीति को नहीं अपनाया होता, तो आज कहानी ही दूसरी होती। सबसे बड़ी बात ये है कि ये भाजपा को मान लेना होगा कि उग्रपंथी राजनीति के दिन लद गये हैं। न तो इसमें भाजपा ही फिट बैठेगी और न ही कोई और पार्टी। चिंतन बैठक में चाहे जो निष्कर्ष निकले, लेकिन अब भाजपा को युवाओं की फौज को लाने के लिए नयी पहल करनी होगी। भाजपाई जिन्ना, पाकिस्तान और लाहौर के बीते दिनों की यादों से बाहर निकल नहीं पाते। भाजपा में सबसे बड़ी बात ये रही कि इसके नेताओं के बेहतर वक्ता होने के साथ लोगों में पैठ बनाने की गहरी क्षमता रही। इस मामले ने ऐसे बड़े नेता इस देश को दिये, जिनसे पार्टी को संबल मिलता था। लेकिन इन नेताओं की आपसी प्रतिद्वंद्विता ने ही लुटिया डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी। धीरे-धीरे आज भाजपा ने नेता एक-एक कर अलग होते जा रहे हैं। मुद्दा कोई भी हो, लेकिन परत दर परत खोखली होती भाजपा ने राजनीतिक परिद्श्य पर असंतुलित होते जा रहे भारतीय राजनीतिक परिवेश को साफ करके रख दिया है। एक बेचैनी उन नेताओं के साथ हर उस शख्स के मन में है, जो इस देश में राजनीति के दो संतुलित छोरों को चलते देखना चाहता है। अगर भाजपा नहीं संतुलित हो पायेगी, तो पूरे देश की राजनीति विभिन्न बिंदुओं पर लड़ी जाती नजर आयेगी। नक्सलवाद, क्षेत्रवाद और अन्य कई वादों से पीड़ित देश भाजपा को खोना नहीं चाहती। लेकिन हाइ प्रोफाइल राजनीति के दिग्गज इस मामले को समझेंगे तब न
Thursday, August 20, 2009
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1 comment:
भाजपा ने राम को त्याग कर अपना सत्यानाश पहले ही कर लिया था. अटल जी को दस हजार जेल बनवाना चाहिये था जिसमें भ्रष्टाचारी, निकम्मे अफसर, नेता, व्यापारी ठूंसे जाते. पूरा आपरेशन करना था कुछ नहीं किया. इनकी सरकार में पुलिसिये बिना किसी कारण इनके कार्यकर्ताओं को कूटते थे. न इधर के रहे न उधर के.
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