धर्म को लेकर आज तक बहसें होती रही हैं। हिन्दू किसे कहेंगे, हिन्दुइज्म क्या है, इसे लेकर समाज विग्यानी चिंतन करते रहे हैं। वैसे ही धर्म को लेकर चिंतन अलग-अलग है। धर्म एक प्रक्रिया है, एक माध्यम है, एक सीढ़ी है, आध्यात्मिकता के शिखर को छूने के लिए। कोई व्यक्ति किसी और को उसका धर्म कैसे बता सकता है। फिर धर्म को लेकर बहस करने की क्या जरूरत है? धर्म के मामले को लेकर होनेवाली बहसों में एक जबरदस्ती दिखती है कि हमारा धर्म महान है। हम महान हैं। हमारी अवधारणा महान है। सवाल ये है कि हम किसी की महानता को लेकर क्या करेंगे? हमारे व्यक्तिगत जीवन में उसका क्या उपयोग है?
ये निश्चित है कि एक अच्छा धर्म बताता है कि
झूठ मत बोलो
ईमानदार रहो
चोरी मत करो
व्यवहार को ठीक रखो
ये हम सब जानते हैं। उस सबके बीच ये बताते रहना कि हमारा धर्म, हमारी संस्कृति या हमारा अभियान सही है, दूसरे की सोच पर अपनी सोच थोपना है। गोंद लेकर किसी पर कवर थोड़ी देर तक चढ़ाया जा सकता है, लेकिन उसके अंदर के माल को बदला नहीं जा सकता। जबरन विचार थोपने की आदत ही एक वर्ग संघर्ष को जन्म देता है। चाहे वह ब्लागिंग के क्षेत्र में ही क्यों न हो। किसी पार्टी या किसी देश की नीति एक धर्म के लिए आंखें मूंद कर चलने से नहीं चलती। आज के दौर में जब आदमी एक लंबी यात्रा कर ये जान चुका है कि धर्म कोई भी हो, सबसे बड़ा धर्म व्यक्ति को जीने का अधिकार देना है, तो धर्म को लेकर होती रहीं बहसे बेमानी लगती हैं।
ये तो खुद को आईने के सामने रखकर खुद से झूठ बोलना है। ये जानते हुए भी कि हम जो बोल रहे हैं, वह निरर्थक है। बहस, प्रतिबहस और फिर चारों ओर एक शांति, यही तो होता है। जब बार-बार ऐसा ही होता है, तो आप क्यों नहीं धर्म के मुद्दे को व्यक्तिगत स्तर तक रखते हैं। उसे क्यों लोगों पर थोपने की कोशिश होती है। थेथरोलॉजी के सिद्धांत से ऊपर उठने की जरूरत है। सबका अपना धर्म है, सबके अपने मुद्दे हैं। उन्हें जीने दें और खुद भी जियें, यही सच्चा कर्म है।
Tuesday, September 1, 2009
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4 comments:
यह सही आदर्श है, लेकिन मानता कौन है।
सही है!
Thether ek bhojpuri shabd hai aur main swayam purab ka hoon....
khair,
saare insaan ka ek hi ndharm hai aur wah hai SANATAN dharm... arabi men ise ISLAM kahte hain...
VED se lekar Qur'an tak Eeshwar ka sandesh ek hi hai aur wah hai
"Ekam brhma dwityon nasti. nehnye nasti, nasti kinchan"
सही आदर्श तो यही है लेकिन लोग माने तब ना !
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