Thursday, September 3, 2009

या खुदा, हे ईश्वर, हे ऊपरवाले ये किस चक्कर में फंसा दिया

ब्लागिंग के चक्कर में देर रात दो बजे सोना, फिर सुबह आठ बजे उठना। सारा रूटीन अस्त-व्यस्त। अनुलोम-विलोम करने की भी फुर्सत नहीं।
यहां उठने के बाद बुढ़ऊ सबके अनुलोम-विलोम, टहलना-घूमना, गरियाते हुए सिस्टम को चुनौती देते देखते हैं। या खुदा, हे ईश्वर, हे ऊपरवाले ये किस चक्कर में फंसा दिया


ब्रेकिंग न्यूज... ब्रेकिंग न्यूज...

हमारा वजन और दो किलो बढ़ गया। कारण- फिर वही टिपियाते रहना, ब्लागिंग करते रहना। इसके लिए दोषी कौन है? इसके लिए मोटिवेटर के रूप में किसने काम किया है, ये जांच का विषय है।






ऊपर मोटी बिल्ली मौसी की तस्वीर ये चेताने के लिए कि हमारी हालत भी ऐसी ही न हो जाये। चिकित्सक महोदय घूमने-फिरने और टहलने के लिए भी बोलते हैं। चीन में तो इंटरनेट से चिपके रहने को बीमारी के रूप में लिया जा रहा है। वहां इसके लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है। इसलिए अब ज्यादा टेंशन नहीं लेकर सकारात्मक यानी पोजिटिव वे में टिपियाना प्रक्रिया करते रहना पड़ेगा। यानी अंतराल-अंतराल पर, लगातार नहीं


जब पहले दिन लिखे थे, तो आप लिखते रहें, हिन्दी की सेवा करते रहें... वाली पंक्ति पढ़ने के बाद जोश-ए-हिन्दुस्तान में पूरा सिस्टम को चैलेंज देते हुए धड़ाध़ड़ लिखते रहें। लिखेंगे क्या, बस उगलते चले गये, जो मन में आया।

अब यहां साल बीतने के बाद शुद्ध-अशुद्ध के चक्कर में विवादित भी हो गया। प्रोफाइल बदल डाला। सुना था कि नाम में क्या रखा है, अब संतोष के लिए बोलेंगे प्रोफाइल में क्या रखा है?

तुम भी आदमी.. हम भी आदमी.... तुम्हारा खून भी लाल... हमारा खून भी लाल...

तुम चालाक..... हम ..... (गेस करिये, ये आप पर छोड़ रहे थे)

कह रहे थे कि ब्लागिंग का चक्कर मल्टीफेरियस प्रोबलेम में फंसाने के लिए काफी है। सुना है कि अमिताभ बच्चन भी ब्लागिंग करते हुए नाराज हो चले थे। लेकिन यहां हम नाराज होकर क्या करेंगे? हम बोलेंगे कि नहीं लिखेंगे, तो हमको टेरेगा कौन? यहां तो लोग हम नहीं लिखेंगे, बोलकर थोड़ी मिन्नत की उम्मीद करते रहते हैं? कम से कम मार्केट रेट तो बढ़ जाता है।


वैसे एक बात खास है कि बाहरी दुनिया से रू-ब-रू तो हो ही लेते हैं।

ब्लागिंग-शलागिंग कर लेते हैं लिख लेते है,
कह देते हैं
निपट गंवार जानके हमको
दुनियावाले रपट देते हैं

हमरी जिंदगी है क्लामेक्स
भरी
सबको है बड़ी हड़बड़ी

इसलिए कहीं नहीं जाके

इत्मीनान से टिपिया के

सुकून भरी जिंदगी का मजा लूट लेते हैं

ब्लागिंग-शलागिंग कर लेते हैं

(ओवरऑल नया कवि हूं, कुछ प्रोत्साहित जरूर करेंगे)

6 comments:

Chandan Kumar Jha said...

चलिये वजन बढने की बधाई. हा हा हा!!!!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

रोज दस मिनट जोगिंग करिए यदि ब्लागिंग लगातार करनी है तो। कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं छत पर चलेगा।
कविता यदि नए कवि हैं तो बहुत अच्छी है यदि कुछ पुराने हैं तो अच्छी है और आगे कुछ नहीं .....
मैं शुरू से आज तक बहुत बुरा कवि हूँ लेकिन मैं इसे ऐसे लिखता...

ब्लागिंग-शलागिंग कर लेते हैं
लिख लेते है,
कह देते हैं
निपट गंवार जानके हमको
दुनियावाले रपट देते हैं
हमरी जिंदगी है क्लामेक्स भरी
सबको है बड़ी हड़बड़ी
इसलिए कहीं नहीं जाके
इत्मीनान से टिपिया के
सुकून भरी जिंदगी का मजा लेते हैं
ब्लागिंग-शलागिंग कर लेते हैं

Unknown said...

अच्छा लगा.........
बधाई !

Anonymous said...

वज़न बढ़ने की बधाई

जब आप ब्लागिंग-शलागिंग कर लेते हैं लिख लेते है,
तो हम भी
टिप्पणी-शिप्पणी कर देते हैं

वाह वाह
दिल से लिख देते है :-)

शरद कोकास said...

भाई सम्भल जाईये हम बिल्ली की जगह आपकी तस्वीर नही देखना चाहते । हाँ कविता लिखने के लिये रोज एक-दो घंटे आसपास घूमना ज़रूरी है सो यह ज़रूर करें -शरद कोकास

Udan Tashtari said...

अब समझा अपने वज़न का कारण...


:)

हा हा!!

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