Thursday, September 17, 2009

क्या राहुल गांधी का रेल से यात्रा करना जरूरी है?

राहुल रेल से सफर कर रहे हैं। एक पोजिटिव स्टोरी प्रेस को मिल रही है। सारे नेता अपनी गिरेबां में झांक कर खुद को आम आदमी के बराबर लाने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन ये सब राहुल क्यों कर रहे? ऐसा क्या है?

क्या राहुल के रेल में यात्रा करने से औसत आदमी की आदमनी बढ़ जायेगी या फिर मायावती मूर्तियों का निर्माण बंद कर देंगी। क्या ऐसा करने से झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में जो फंड बिना उपयोग के पड़े हैं, उनका उपयोग शुरू हो जायेगा। या फिर उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में शांति की हवा चल निकलेगी? काफी सारे सवाल हैं? जो सिर उठा-उठाकर इस मन बहलौवा कदम से रूबरू होकर पूछ रहे हैं।

ये एक आम राय है कि राहुल एक वुड भी प्राइममिनिस्टर कैंडिडेट के रूप में तैयार किये जा रहे हैं। कांग्रेस की रणनीति सब समझ रहे हैं और जान रहे हैं। कांग्रेस की सफलता में काफी कुछ हाथ राहुल गांधी का भी है। लेकिन सादगी को लेकर जो बवाल मचा है, वह हमारी समझ से बाहर है। सिर घुमा कर देखिये, तो चीन इंच-इंच कर कदम बढ़ाकर आपका टेंटुआ दबाने की तैयारी कर रहा है। रक्षा मामलों में तोपें, बंदूके, जहाज पुरानी हो चली हैं। कई समस्याएं हैं, जिन्हें गिनने लगें, तो लगेगा कि हमारे साथ धोखा हुआ है। वैसे में ये रेल यात्रा का प्रपंच क्यों?

एक सीधा सवाल है। राहुल यदि चाहें, तो काफी कुछ कर सकते हैं। इस देश को राहुल से उम्मीदें बहुत हैं, लेकिन रेल यात्रा और सादगी का माया जाल सारा कुछ छीन ले रहा है। जनता है कि सब जानती है। नब्ज टटोलती रहती है। यहां मंत्रियों के एक दिनी खर्चे सुनकर होश उड़े हुए हैं, वहीं विकास के कई कार्य करने बाकी हैं।

ये देश वैसे भी काफी कुछ झेल चुका है। अब सादगी, रेल यात्रा और मिठाई बांटने जैसे ख्वाब सिर्फ आईने पर पत्थर उठाकर फेंकने जैसे साबित होंगे। प्रोफेशनलिज्म के जमाने में राजनीतिक भी प्रोफेशनल बनें, हमारा तो यही मानना है। हम तो ये कहते हैं कि राहुल हवाई जहाज में ही सफर करें, लेकिन इस देश को तरक्की की उस ऊंचाई पर ले जायें, जहां हर औसत आदमी हवाई जहाज की यात्रा करने की औकात रखता हो।

इस देश को हर दल ने छला है। मन तार-तार होकर बार-बार लहूलुहान हुआ है। न जाने कितने हिसाब राजनीतिकों को देने होंगे। अब और नहीं सहा जाता। राहुल गांधी रेल छोड़ जेट से यात्रा करें, कोई आपत्ति नहीं, बशर्ते तरक्की के अनछुए द्वार खोल दें।

3 comments:

शरद कोकास said...

रेल मे यात्रा करना ही है तो एक बार चुपचाप जनरल डब्बे मे जाना चाहिये था वह भी भेस बदल कर ।

Udan Tashtari said...

सब सियासी उठा पटक है बस!!

संगीता पुरी said...

प्राचीन काल में जनता के दुख दर्द को महसूस करने के लिए राजा जनता के सामने वेश बदलकर जाया करते हैं .. आज कलियुग में राजनीतिक उपलब्धियों के लिए ये सब नाटक किए जाते हैं .. उपर से सारी व्‍यवस्‍था मजबूत रहे तो नीचेवाले को सुधारने में समय नहीं लगता !!

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