Thursday, December 10, 2009

बिना योजना, बिना लक्ष्य के चलता ये राज्य

एक खबर है मामूली सी कि झारखंड में मलेरिया का प्रकोप बढ़ चला है। डॉक्टर कहते हैं कि समस्या की जड़ में वाटर लॉगिंग समस्या है। जब तक जल निकासी की उचित व्यवस्था नहीं होगी, ये समस्या बरकरार रहेगी। जमा पानी मच्छरों की ब्रीडिंग के लिए उपयुक्त होता है। अब थोड़ा, गौर फरमाए , तो पूरी समस्या के पीछे बिना योजना के शहरी विकास भी है। हमारे यहां रांची में कॉलोनियों का विस्तार बड़े स्तर पर हुआ है। लोग जहां-तहां घर तो बना ले रहे हैं, लेकिन नाली की व्यवस्था नहीं करते। कैसे पानी निकल कर जाए, इसकी तो सोचते ही नहीं। बिना योजना के बसते शहर में ऐसी कई समस्याएं आ रही हैं, जिसका निदान योजनाबद्ध विकास या निर्माण ही है। पश्चिमी देशों ने अपने यहां एक व्यवस्था विकसित की है। अनुशासित जीवनशैली और समस्या समाधान के प्रति उनका समर्पण ही उनके विकसित होने का कारण है। हमारे यहां मुंबई और कोलकाता जैसे शहर भी बिना योजना के आज कई कठिनाइयां झेल रहे हैं। मसलन बढ़ती आबादी के हिसाब से वहां भी सिवरेज सिस्टम आज भी पुरानी व्यवस्था के हिसाब से है। मामला ये है कि बिना योजना के निर्माण के कारण कई कठिनाइयां सामने आ रही हैं। यहां झारखंड में पाइप लाइन के ऊपर करोड़ों की सड़क बना तो दी गयी, लेकिन उन्हीं सड़कों को बाद में पेयजल आपूर्ति विभाग पाइप मरम्मत के नाम पर सीधे कोड़ दे रहा है, जिससे सड़क पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। सरकारी विभागों के बीच कोई को-आर्डिनेशन नहीं रहती। बिना योजना के जनता की राशि ही खर्च की जाती है।सरकारी अस्पताल दवा और उचित प्रशासन के अभाव में डांवाडोल स्थिति में रहते हैं। कोई मां-बाप नहीं होता। विकासशील देश की चलताऊ अवधारणा से ऊपर उठकर ही विकसित होने की राह अख्तियार की जा सकती है। चलता है वाली मानसिकता से सारा चीज गुड़गोबर हो जा रहा है। रमुआ बचवा को पढ़ा नहीं पा रहा है, क्योंकि टीचर स्कूलों में नहीं हैं। बिना योजना, बिना लक्ष्य के चलता ये राज्य या कहें सिस्टम कहां जाएगा।

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