Sunday, December 20, 2009
ये नया साल, ये खुशी, मेरे काम की नहीं...
साल खत्म होने में दस दिन देरी है। दस दिन गुना २४ घंटे २००९ का ये सोच-सोच कर गुजार देंगे कि अगला साल बेहतर होगा। जरा सोचिये, क्या अगला साल, अगला कल कभी आता है। बीतते समय को कल, आज और अभी में बांटकर जो मन बहलाने का खेल हम करते हैं, उसमें हम खुद कितने उलझते चले जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे बिजी यानी व्यस्त होने का ढोंग रचते हैं। हम-आप सुबह के नौ बजे से रात के दस बजे तक ऐसे काम में बिजी रहते या दिखते हैं, जिन पर लगता है कि हमारा जीवन निर्भर है। हमारा जीवन, जो हमारा तो है ही नहीं। किसी और का भी नहीं होने देते हैं। हम एक बेहतर कर्म करनेवाले भी नहीं होते , क्योंकि हम सिर्फ अपने लिये जीते हैं। वैसे में नये साल का स्वागत करने की तैयारी कैसी? क्या नया साल आयेगा, तो हमारी सोच बदल जाएगी? क्या हमारे देश के नेता सुधर जाएंगे या गरीब अमीर बन जाएंगे। नये साल के स्वागत के लिए नामचीन हीरोइने नाचेंगी, करोड़ों रुपए लेंगी, होटलों में डांस होगा, उनकी कमाई होगी। युवा ब्रिगेड जमकर थिरकेगा और फिर नशे में उलझे पांव बिस्तर पर शरीर को धकेल कर निढाल कर देंगे, दो दिनों के लिए। उसके बाद आबादी का बड़ा हिस्सा फिर उसी संघर्ष में भिड़ जाएगा। संघर्ष, जो कि हम सब करते रहते हैं रोज। जिस दिन ये संघर्ष नहीं रहेगा, उस दिन सही अर्थ में मस्ती की शुरुआत होगी। नये साल की शुरुआत होगी। ये साल भी कसाब को बिना कोई दंड दिए बीत रहा है। घड़ियाली आंसुओं के बीच जिंदगी बदरंग होती जाती है। ये साल जाने का न तो मुझे गम है या न खुशी। क्योंकि ऊपरवाले ने इतने जख्म दिए हैं कि जिंदगी को जीने से डर लगता है। नया साल कभी नहीं आता। नये रिश्ते कभी नहीं बनते। हम तो उन्हें ही नयी परिभाषा देते हुए अपनी संतुष्टि का यकीं कर लेते हैं। इसलिए नये साल के छद्म प्रतिरूप से ऊपर उठिए और बाहें फैलाकर उस संघर्ष का स्वागत कीजिए, जिसका हम सबको सामना करना है। लेकिन बिना उल्लास मनाये। क्योंकि आज भी न जाने कितने दर्द दवा का इंतजार कर रहे हैं।
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2 comments:
बिलकुल ठीक कहा आपने.. सबकुछ जानते हुए भी हम नए साले के उलास में भीगे रहते है..
सही कह रहे हैं>
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