Tuesday, December 22, 2009

खंडित जनादेश के साथ झारखंड दोमुहाने पर


फिर खंडित जनादेश के साथ झारखंड दोमुहाने पर खड़ा है। भाजपा के बहुमत पाने के ख्वाब मिट्टी में मिल गए। गीता कोड़ा जीत गयीं। यानी मधु कोड़ा के विवादों का कोई असर नहीं रहा। झारखंड में मुद्दों पर आधारित राजनीति का अंत हो गया है। यहां व्यक्तित्व केंद्रित राजनीति का एक नया युग शुरू हुआ है। और इसके दूरगामी परिणाम सामने आएंगे। जिन चेहरों ने अपने क्षेत्र में प्रभाव छोड़ा है, वहां वे जीतते चले गए। ऐसा क्यों? ये सवाल दिल्ली में बैठे राष्ट्रीय दलों के आकाओं को भी सोचना होगा। ऐसा कोई नेता नहीं बचा, जो चुनाव के दौरान प्रचार के लिए नहीं आया, लेकिन उनकी बातों का कोई असर नहीं रहा। कोई एक ऐसी बात नहीं रही, जिन पर कि राज्य की जनता एकमत होकर किसी पार्टी को सत्ता में बैठा सके। ये झारखंड के ऐसे भविष्य की ओर संकेत कर रहा है, जहां विवादों का सिलसिला चलता रहेगा और व्यवस्था हाशिये पर जाता रहेगा। अगले ४८ घंटे के बाद सीटों और सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर जो जोड़-तोड़ का खेल चलेगा, उसमें सिर कितना शर्म के पानी में डूबेगा और उतराएगा, ये अहम है। पूरे परिणाम के बाद एक बात जाहिर है कि लड्डू झामुमो के दोनों हाथों में है और गुरुजी राष्ट्रीय दलों को जिधर जैसे चाहें, नचा सकेंगे। गुरुजी के बुरी दिन बीत चले हैं और अच्छे दिन आ गए हैं। कहना यही है कि आगाज ऐसा है, अंजाम कैसा होगा।

5 comments:

संगीता पुरी said...

सरकार तो किसी की बन ही जाएगी .. और लाभ भी नेताओं को मिल ही जाएगा .. पर मुझे भी झारखंड और उसके निवासियों के भविष्‍य की चिंता हो रही है !!

हरि जोशी said...

गुरुजी चाहे मुख्‍यमंत्री बने या कोयला मंत्री लेकिन हाथ तो सफेद हो नहीं सकते।...सब चिल्‍ला रहे हैं कि जनता जागरूक और समझदार है लेकिन परिणाम देखकर क्‍या किसी को लगता है।

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

जनता स्वयं लतखोर है, एक चिन्तक क्या कर लेगा.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मोदी ने अच्छा कदम उठाया है, जिसकी आलोचना भी होने लगी है. ईवीएम में यह व्यवस्था हो कि आपका अपना वोट जाता हुआ दिखाई दे और काउन्टर भी लगा हो. मतदान अनिवार्य और जनता को अपना वोट जाते हुये दिखाई देना चाहिये. हरि जी और राजीव जी ठीक कह रहे हैं. संगीता जी की चिन्ता वाजिब है. सुबह आपके ब्लाग पर कमेन्ट नहीं जा पा रहा था.

Himanshu Pandey said...

यह जनादेश चिन्ता तो उत्पन्न करता ही है । सबसे बड़ी बात यही है कि मुद्दे एकदम-से खो गये ।

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