Friday, January 1, 2010
महानुभावों गधे को गधा कहें, लेकिन बेचारगी के साथ नहीं.
मेरे एक मित्र हमें ज्यादातर समय मजाक में कहते फिरते हैं-गधे हो गए हो क्या? हमारे कान भी सुनते-सुनते पक गए। पूछ ही बैठा, क्यों गधा होना खराब है? गधे की बिरादरी में हूं या नहीं, इसे लेकर तो बाकी भाई लोग रिसर्च करते रहेंगे, लेकिन अपना भेजा बेचारे गधे को लेकर किये जा रहे व्यंग्य से परेशान है। मैं गधे की सादगी, उसकी मेहनत, उसकी सहनशीलता और उसके कई गुणों का कायल हूं। मैं गधा को गधा नहीं मानता। गधे के लिए नये सिरे से सोच को विकसित करने की जरूरत है। घोड़ा बनकर, तेज रफ्तार दौड़कर, संयम की सीमा को लांघकर हम खुद अपने समाज पर कौन सा उपकार कर रहे हैं। मैं गधे के लिए बेचारे शब्द का प्रयोग भी नहीं करूंगा। बेचारा क्यों कहें, क्यों? ये सवाल मैं हर उस शख्स से पूछना चाहता हूं, जो गधे की बेचारगी को लेकर परेशान सा है। सभ्यता के विकास से लेकर आज तक गधा संस्कृति का हिस्सा रहा है। पहाड़ हो या मैदानी या रेगिस्तानी इलाका, गधा भार ढोकर हमारी मुश्किलों का साथी बनता है। उस रईस घोड़जादों से तो लाख गुना बेहतर है, जो रेस में इस्तेमाल के लिए तैयार किये जाते हैं। यहां दो रास्ते दिखते है, एक ईमानदारी से समर्पण के तौर पर मेहनत करते हुए जिंदगी गुजारना और दूसरा घोड़े की तरह खा-पाकर रेस के लिए तैयार करना। शांत होकर काम करते जाने को क्या गधे की श्रेणी में रखा जा सकता है? गधे की जिंदगी आकर्षित करती है। जितने किस्से गधे पर बने हैं, उतने घोड़े पर नहीं। दूसरी बात गधा अगर इतना ही सीधा भी होता, तो गधे की दुलत्ती भी उतनी खतरनाक होती है। हमारे हिस्से में गधे की जिंदगी आयी है, तो क्यों नकारें? परिश्रम के बल पर खुद का संघर्ष जीतते चलते हैं। ऐसे में कोई हमें गधा कहे, तो हम हैं गधे, उससे फर्क क्या पड़ा है। इसलिए महानुभावों गधे को गधा कहें, लेकिन बेचारगी के साथ नहीं.
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3 comments:
अलग-अलग संस्थानों में भर्ती को लेकर आजकल मैंने एक मुहावरा गढ़ा है- इंटरव्यू में सब गधे आते हैं,चुने जाने के बाद घोड़े करार दिए जाते हैं।..पता नहीं मजबूती में या फिर मजबूरी में।..
बहुत सटीक!! बेचारगी तो त्याग ही सकते हैं :)
हम सभी गदहे ही तो हैं। नहीं रहते तो गदहे के बारे में इतनी जानकारी कहां से आती। बहुत खूब भाई।
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