Monday, January 18, 2010
फेसबुक और नक्सलवाद फंतासी
फेसबुक आज-कर वैचारिक लड़ाई के अखाड़े में तब्दील होता जा रहा है। जाहिर है, फेसबुक पर आनेवाले पढ़े-लिखे और कंप्यूटर फ्रेंडली लोग है। यहां पर समाज को बदलने की बातें होती हैं। की जाती हैं। वैसे में नक्सलवाद पर एक बहस में हिंसा को जायज ठहराने की मानसिकता कुछ भेद जाती है। हिंसा को लोग कैसे जायज ठहरा सकते हैं। कहते हैं कि बहस के खत्म हो जाने, वैचारिक प्रवाह के रुक जाने के कारण लोग गुरिल्ला बनते हैं। ये कैसे संभव है। बिना विचार के कोई बंदूक कैसे उठा सकता है। क्या सिर्फ तथाकथित जुल्म के विरोध के नाम पर ऐसा करना उचित है, वह भी संगठित रूप से। हमारे विचार से फेसबुक पर समर्थन करनेवाले ये वे लोग हैं, जिन्हें निचले तबके में हो रहे अन्याय के बारे में कुछ पता नहीं। उन्हें ये पता नहीं है कि कैसे गांव के गांव पुलिस और नक्सल आंदोलन के नाम पर पिसते चले जाते हैं। कैसे रोजगार नहीं रहने के कारण ग्रामीणों को पलायन के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। झारखंड-बिहार का एक बड़ा भाग इन्हीं आंदोलन के नाम पर हाशिये पर चला गया। पं बंगाल में लालगढ़ उदाहरण है। लोग हिंसा को कैसे जायज ठहराते हैं। कैसे क्रांति की बातें करते हैं। परिवर्तन की बात क्यों नहीं करते। ऐसा लगता है कि लोगों के नजरिये में कहीं कुछ गड़बड़ है। या तो वे फंतासी के नजरिये से नक्सलवाद को देख रहे हैं और नहीं तो हकीकत से इतने दूर हैं कि शरीर से पास होते हुए भी मन से दूर हैं। ढेर सारे सवाल उठ रहे हैं।
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3 comments:
When I was in School i wanted to be an Maoist. Not because they have power but they fight for the cause of poor. I have seen the atrocities committed by authorities in the name of law and order only to appease some influentials.
नक्सली तो नक्सली हैं ही, बाकी पुलिस भी नक्सलियों से कम नहीं है.
jiske pet mein bhojan nahi hai agar uske haath mein bandook aaj hum log dekh rahe hain to ismein achanbha kis baat ka hai?
unhi logon ke pados mein rehne wala sarkari adhikari apni bhains bhi saaf pani se dhota hai aur villagers khet mein se pani peete hain. yahan dilli mein baith ker main sirf andaja laga sakta hoon ki jab kisi ka bachcha bhookh se mar jaata hai ya kisi ki beti sarkari tantra ke afsar ki havas bujhane ke liye utha li jaati hai to us aadmi per kya beetti hogi.
Waise humara desh surakshit haathon mein hai, economist samaj ka achcha vishleshak ho sakta hai aur " hai" bhi.
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