नरेंद्र मोदी कहते हैं कि गांधी जी हमारे हैं। गांधीजी के अच्छे इंप्रेशन को इनकैश करने में जुट गये हैं मोदी। आज के दौर में आदर्शवाद की बात करनेवाला बेवकूफ माना जाता है, वैसे में जब विशुद्ध व्यापारी की तरह नरेंद्र मोदी काम करते हैं और टाटा को रातों रात अपना प्लांट बंगाल से गुजरात लाने के लिए तैयार कर लेते हैं, तो लगता है कि हर राज्य को मोदी जैसा सीएम चाहिए। अमिताभ के ब्रांड अंबेस्डर बनने पर शायद ये राय बनती है कि अमिताभ फायदे के लिए मोदी से जा मिले हैं। अमर कमजोर हुए कि वे मोदी की ओर लपक लिये। लेकिन इस दुनिया में आज सबसे बड़ा बेवकूफ वही है, जो मौके के हिसाब से नहीं चले। हर आदमी प्राफिट माइंडसेट से काम कर रहा है। इसलिए जब व्यक्तिगत जीवन में भी तरक्की करनी है, तो उसी माइंड सेट के हिसाब से चलना होगा। मीडिया के ही लोग भी तो हमेशा फायदे की दृष्टि से काम करते हैं, वैसे में हम अमिताभ या नरेंद्र मोदी से आदर्शवाद की कल्पना क्यों करते हैं। आज के जमाने में आदर्शवाद बेमानी चीज हो गयी है। जिस दिन अमिताभ प्रोफेशनल माइंडसेट से नहीं चलेंगे, किनारे कर दिए जाएंगे। यही सच्चाई भी है। नरेंद्र मोदी अगर उन्हें ब्रांड अंबेस्डर बनाते हैं, तो इसमें हमें कोई खराबी नजर नहीं आती। कर्म करना महत्वपूर्ण है। नीतीश हों या नरेंद्र मोदी, इन लोगों ने सीएम होते हुए ये दिखा दिया है कि पद से ज्यादा व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। अन्य राज्यों में भी सीएम हैं, तो वे उतने प्रभावी नहीं हैं या अपने जनहित के उद्देश्य में विफल हैं। ऐसे में
नरेंद्र मोदी या अमिताभ बच्चन के प्रति ऋणात्मक नजरिया ठीक नहीं माना जा सकता। प्रहार तो उन पर करें, तो जो अकर्म हों। जिन्होंने बड़ी लकीर खींचने की कोशिश नहीं की। वैसे में अमिताभ बच्चन या नरेंद्र मोदी पर कुछ बोलना पूर्वाग्रह से ज्यादा कुछ नहीं लगता।
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2 comments:
सही बात। व्यक्तित्व का घालमेल नहीं किया जाना चाहिये। मोदी मोदी हैं, अमिताभ अमिताभ, और बापू बापू।
साम्य ढूंढ़ना मानव स्वभाव है, पर बहुत फायेमन्द नहीं!
बहुत सम्यक विचारा है आपने।
मुझे पूरा शक है कि जो अमिताभ को गाली दे रहे हैं, 'मेडम' से पुरस्कार की इच्छा से वैसा कर रहे हैं। अभी हाल में ही वे इसी 'चारणगिरी' के लिये पुरस्कृत भी हुए थे।
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