मुंबई किसकी है। आपकी, हमारी, सारे भारत की, या सिर्फ ठाकरे साहब की। सियासत में टकराव की बात हो आयी है। यहां इन नेताओं को कुछ कहने के लिहाज से क्या लिखा जाए, ये आपका-हमारा मन जानता है। क्षेत्र देश की मिट्टी से बड़े होते जा रहे हैं। राहुल गांधी को ये कहना पड़ता है कि मुंबई हमले के समय आतंकियों का सामना करनेवालों में ज्यादातर बिहार और यूपी के थे। क्यों कहना पड़ रहा है बड़ी लाचार स्थिति है।
शाहरुख ने माफी मांगने से इनकार कर दिया है। एपिसोड शुरू हुआ आइपीएल में पाक खिलाड़ियों को खेलाने पर बयान देने पर। उसके बाद से शिव सेना हमला पर हमला बोल रही है। हम कहते हैं कि देश की आर्थिक राजधानी को क्यों इतना बेबस बनाया जा रहा है? सरकार कहां है? पूरी नौटंकी में ये बयान नहीं आता है कि देश में महंगाई के लिए क्या किया जा रहा है? हमें तो लगता है कि पीछे-पीछे सारे नेताओं में दोस्ती है और कैमरे के सामने दुश्मनी। साफ तौर पर पब्लिक को बेवकूफ बनाया जा रहा है।
पूरे एपिसोड में किसको क्या होने जा रहा है?
क्या शिव सेना के खिलाफ केंद्र कोई कार्रवाई करेगी?
क्या राहुल के खिलाफ शिवसेवा कुछ करेगी?
क्या तीन साल से बाहरी-भीतरी की नौटंकी शांत हो जाएगी?
क्या ये मुद्दों से भरमाने के लिए एक रणनीति नहीं है?
क्या इसमें सारे दल मिले हुए नजर नहीं आते?
इन मामलों में गौर करें, तो शाहरुख आइपीएल में पाक खिलाड़ियों की बोली क्यों नहीं लगाते हैं। थोड़े समय के बाद बयान देते हैं। क्या वे नहीं जानते हैं कि मामला क्या हो गया है? आज शाहरुख माफी नहीं मानने की बात कर हीरो बन गए हैं। कांग्रेस उन्हें समर्थन दे रही है। क्या लोग यहां मूर्ख हैं, जो कुछ नहीं जानते? मामला साफ है, सारा कुछ रणनीतिक है। अगले हफ्ते माइ नेम इज खान फिल्म भी रिलीज हो रही है। प्रचार
भरपूर मिल रहा है। लोग भी इंतजार कर रहे हैं। हर फिल्म के पहले एक विवाद जरूर होता है। ये नये पीआर का एक साउंड स्ट्रेटेजी है।
मुंबई तो पूरी राजनीति का अब वह मोहरा बन गया है, जिस जब जो चाहे चला देता है। हमारा तो ये कहना है कि देश में मुंबई जैसे तीन-चार आर्थिक राजधानी की हैसियतवाले शहर हो जाएं, तो विवाद ही खत्म हो जाए।
राहुल भले ही कुछ बोलें या कहें, लेकिन उनकी रणनीति जो कुछ समय पहले युवा के नाम पर कामयाब लग रही थी, आज विरोधभासी लगती है। साफ तौर पर मुंबई के नाम पर जो नौटंकी है, जो राजनीति का एक खेल है, वह बेवकूफ बनाने का हथकंडा है। यहां तक कि सीएम भी टैक्सी ड्राइवरों को लेकर चिंतित हो उठे हैं। रोजगार पैदा करिये साहब। हर राज्य में तरक्की की लौ जलाइए। हम-आप लड़-भिड़ कर कौन सा पदक पा लेंगे।
Thursday, February 4, 2010
मुंबई जैसे तीन-चार आर्थिक राजधानी की हैसियतवाले शहर हो जाएं, तो विवाद ही खत्म हो जाए।
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4 comments:
भारत का इतिहास इसी तरह के विभाजन और आपसी लड़ाई झगड़ों की दास्ताँ लिए हुए है
२०१० का समय भी ये धर्म, क्षेत्रीयतावाद , जात पांत के भेद भावों को मिटा न पाया उसका
बहुत अफ़सोस है - -- हर देश भक्त को नमन --
भारतीय जनता कब संगठित होगी ? बातें करने का समय कब का बीत चूका है ...
अब तो , कायरता का त्याग करो ...नेता क्या करेंगें ? सिर्फ टेक्स लेंगें आपसे ..
जनता जनार्दन कब जागेगी ?
- लावण्या
तब कुछ नया विवाद खोज लेंगे...सब सियासती चालें हैं.
सही पकड़ा! ग्रोथ रेट बढ़े बीमारू प्रान्तों की; वही असल समाधान है!
जी नहीं विवाद खत्म नहीं होगा, वहां भी ऐसे ही नेता पैदा हो जायेंगे. इस देश के साठ सालों का इतिहास देख लीजिये, आज तक सत्ता के लिये तमाम जायज नाजायज हथकंडों के लिये अपनाया है राजनीतिक पार्टियों ने. जिसमें जननी है कांग्रेस.
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