Monday, February 8, 2010

ब्लागियाते रहिये...

आज-कल पता नहीं, क्या कहें, ब्लाग जगत सामाजिक संपर्क का एक माध्यम बनता जा रहा है। अच्छा लगता है, जब दो अपरिचित लोग या काफी सारे परिचित लोग रिश्ते में बंधते दिखते हैं। अमेरिका में बैठे समीरलाल छाये हुए रहते हैं ब्लागरों के दिलोदिमाग पर। हमारे लिये ब्लागिंग कुछ-कुछ टाइम पास जैसा रहता है, लेकिन उसमें सीरियसनेस भी रहती है। हम लोग ब्लागर हैं, ६० से ७० लोग टिपिया कर एक-दूसरे को खुश करते रहते हैं। लेकिन इन सबसे अलग क्या इसके दायरे को बढ़ाने के प्रयास पर गौर नहीं होना चाहिए। भाषा, सेक्स धर्म और एक-दूसरे को बधाई से अलग होकर क्या ब्लाग को बहस का केंद्र नहीं बनाया जा सकता है। हम तो ये चाहते हैं कि जमकर बहस हो, यहां तक कि मुद्दों पर मतभेद भी हो जाए और उससे जो निष्कर्ष निकले, वह दिल को ये तसल्ली दे जाए कि हां ये बात होनी चाहिए। लेकिन दुखद स्थिति ये है कि काफी समय खाली पोस्ट को देखकर आगे बढ़ जाने की इच्छा होती है। वैसे १४ फरवरी को लेकर भी कई पोस्टें आएंगी, उसमें भारतीय संस्कृति पर हमले को लेकर चिंता जाहिर की जाएगी। हम लोग भी आनंदित होंगे दो-एक टिप्पणी देकर और सो जाएंगे। एक भाई साहब कहते हैं कि आप उपदेशक की भूमिका में आते जा रहे हैं। लेकिन क्या करें, आदत से लाचार हैं। 

2 comments:

रानीविशाल said...

Baat to aapki shat pratishat sahi hai...bloging ka uddeshya hi yahi hai "to way communication & fair discussion"
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

विमर्श तो होना चाहिये और जिन्हें पसंद हो, उन्हें उसमें शामिल भी होना चाहिये.

अपने अपने स्तर पर पर हो भी रहा है. कहीं कुछ कमी दिख रही है क्या, सर?

आप शंखनाद करिये न!!

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