जिंदगी में कभी-कभी रुककर तांक-झांक करते चलना चाहिए। अपना तो स्टाइल है बेफिक्र होकर किसी को कुछ बिना कहे चलने को। लेकिन कभी-कभी लुका-छिपी में ऐसी बातें सामने आती हैं कि सामने आकर बोलना पड़ता है। जहां तक जानकारी है कि महफूज अली साहब शायद स्टार ब्लागर हैं। उनके कमेंट्स को लेकर कुछ पोस्टें पढ़ीं। उत्सुकतावश उनके द्वारा दिए गए कमेंट्सवाले पोस्ट पर गया। कमेंट्स ऐसे थे कि नागवार गुजरता है। उनके लिए शाहरुख नचनिया हो गए। भाई साहब से ये पूछना था कि उन्होंने कौन सी अलग से डिग्री ले ली है कि उन्होंने शाहरुख के खिलाफ ऐसी टिप्पणी कर दी।
शाहरुख खान पर तो हमने भी पोस्ट लिखी थी कि ये फायदा उठाने की कवायद है। लेकिन यार आपने तो पूरा आक्रोश ही व्यक्त कर दिया है। जहां तक उनके द्वारा शब्दों के चयन का मामला है, तो रूपर्ट मर्डोक पर शाहरुख के सहारे इंटेलेक्चुल आतंकवाद फैलाने की बात कही गयी है।
इंटेलेक्चुअल आतंकवाद क्या होता है? आप-हम जिस बौद्धिक जमात की चर्चा करते हुए चिंता जताते हैं, उसके सबसे बड़े गुनहगार तो हम-आप हैं। सही मायने में कहें, तो शाहरुख पर आप मौके का फायदा उठाने का आरोप लगा सकते हैं, लेकिन अगर जैसे कि आजवाणी साहब बता रहे हैं, बताते हैं कि इस फिल्म में कैसे आतंकवाद को धर्म के चश्मे से नहीं देखने का संदेश दिया गया। ये इंटेलेक्चुअल आतंकवाद नहीं है। इंटेलेक्चुअल आतंकवाद ये है कि आप सच्चाई को स्वीकार नहीं करते। महफूज साहब फरमाते हैं कि शिवसेना की राष्ट्रवादी विचारधारा को वह मानते हैं। अब महफूज साहब से ही ये पूछना है कि वे किसे राष्ट्रवादी विचारधारा मानते हैं। क्या सिर्फ मराठी और महाराष्ट्र की बात करना राष्ट्रवादी विचारधारा है। हद है। या पाकिस्तान या आस्ट्रेलियाइ खिलाड़ियों के मुंबई में नहीं खेलने देने की बात करना। बेचारे आजवाणी जी सफाई पर सफाई दे रहे हैं। जहां तक रूपर्ट मर्डोक की बात तो है, तो उसके लिए विस्तृत अध्ययन की जरूरत है। यहां सिर्फ बातें कहने के लिए बात नहीं कहूंगा।
एक बात कहना चाहूंगा कि किसी बहस को जब धार देने की जरूरत होती है, तो यहां किसी भी प्रकार से बहस को भटकाने का प्रयास शुरू हो जाता है। अब देखिये शाहरुख स्टार न्यूज पर ही बोल रहे हैं कि वे पूरी इंडिया के ब्रांड एंबेस्डर बनना चाहते हैं। अब इस पर आपत्ति न उठाइयेगा। हम ये मानते हैं कि शाहरुख पेशेवर हैं और फिल्म को हिट कराने के लिए विवाद का सहारा लेते हैं। लेकिन इसके बहाने उन पर व्यक्तिगत प्रहार करना गलत है।
वैसे आतंकवाद को समझने के बहाने सुभाष घई द्वारा निर्मित फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट देखी। इसमें जिस आदर्श को प्रस्तुत किया गया है और देश के संस्कार के मामले में धनी होने को दिखाया गया है, वह इंटेलेक्चुअली ब्रेनवाश करनेवाली बात है। हमें ये स्वीकार करना होगा कि हम लोग इंटेलेक्चुअली करप्ट माइंडसेट के हो गये हैं, जो सिर्फ फायदे के लिए धर्म और देश का सहारा लेते हैं। जब देश की बात की जाये, तो ये जरूर बताया जाये कि देश की प्रगति के लिए खुद से अलग हटकर किया प्रयास हमने किया है। सिर्फ बौद्धिक जुगाली के लिए आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल न करें।
आतंकवाद का कांसेप्ट खुद कई मायनों में विरोधाभास भरा है। दिल पर हाथ रखकर हमें पूछना चाहिए कि सिर्फ खान नाम रख लेने या किसी के मुसलमान हो जाने से उसके प्रति हमें गलत नजरिया रखना चाहिए क्या? और साथ ही हम क्या इस बहाने दूसरी अवसरवादी ताकतों को मजबूत नहीं बना रहे।
एक बात और आजवाणी साहब को ब्लाग जगत पर पाकर खुशी हुई। उनकी बातें खरी-खरी हैं और ये हमें भी पसंद है।
हम तो भाई दो टुक बात कहने में विश्वास रखते हैं, चाहे ये अच्छा लगे या बुरा।
Thursday, February 18, 2010
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11 comments:
महफ़ूज़ साहब वैसे तो कोई स्टार ब्लॉगर हैं नहीं मगर आप लोग बनवाकर ही छोड़ोगे ऐसा लगता है।
ye to mehfooz bhai to thes pahuchane wali baat ki hai aapne...
mehfooz bhai bahut hi ache insaan hai...........
wo bhala kisi ko aisa comment kyo denge...
आपने बहुत अच्छी बात कही कि आजवाणी को पाकर ब्लॉग जगत खुश है। उनकी पोस्ट और उस पर आए उबाल को भी अभी पढा। हमारा वोट आपको और आजवाणी को, लगे रहिए।
@sanjay ji link diya hai, dekh liya jaye...
दुरुस्त फरमाया है आपने।..
महफूज जी जो भी लिखते हैं, खरा लिखते हैं और बेधड़क लिखते हैं. कुछ शब्दों से कई लोगों को आपत्ति हो सकती है, मुझे भी है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि महफूज जी की टिप्पणी में पूरा लिखा हुआ बिल्कुल ही निराधार है. कुछ ब्लाग्स और साइटों पर चलाया जा रहा कुछ लोगों के विरुद्ध उन्हें हेय सिद्ध करते हुये एकतरफा अभियान चलाया जा रहा है, यह भी इंटेलेक्चुअल आतंकवाद है. हिन्दुओं के विरुद्ध कई ब्लाग्स पर किया जा रहा दुष्प्रचार भी इंटेलेक्चुअल आतंकवाद ही है.
भारतीय नागरिक से सहमत…। शाहरुख ने कम से कम अब तक यह तो सिद्ध नहीं किया है कि वे "नचनिया" से ऊपर भी कुछ हैं…। रही शाहरुख के बौद्धिक स्तर की बात, तो पाकिस्तान को "महान पड़ोसी" बताकर वे उसे भी उजागर कर चुके… (नेपाल महान पड़ोसी क्यों नहीं है, क्या यह अलग से बताने की जरूरत है?) :) :)
shahrukh ek abhineta hai.. aur unki ek garima hai, ise aap kyo bhool jate hai...
सिर्फ़ चंद बातें कहनी है , पहली ये कि इस बहस के लिए जरूरी नहीं था कि शीर्षक में नाम लिया जाता , चाहे वो महफ़ूज़ अली जी का ही हो ।
अब बात उनकी टिप्पणियों को लेकर और खासकर शाहरूख खान को लेकर , तो अभी कुछ ही दिनों पहले पढा था ..रविश जी का एक आलेख था शीर्षक था सदी के महानालायक अमिताभ बच्चन और उन्होंने अपने तर्कों से इसे साबित करने की कोशिश भी की , जनता है तो अपने अपने तरीके से शैली से और कूव्वत से प्रतिक्रिया भी देगी , शब्दों की शालीनता जरूरी है ये मैं मानता हूं .....मगर किसी की एक टिप्पणी एक पोस्ट मात्र से उसके संपूर्ण लेखन का आकलन करना मुझे तार्किक नहीं लगता कभी भी । बांकी तो जो है वो यकीनन बहस का मुद्दा है ...बहस हो तो अच्छी बात है ...
अजय कुमार झा
इंटेलेक्चुअल आतंकवाद का एक उदहारण है ...
एम्. ऍफ़. हुसैन द्वारा बनायी गयी माँ दुर्गा, माँ सरस्वती की नग्न पेटिंग्स....और जिस तथाकथित कलाकार को बड़े अभिमान से हमारी सरकार सम्मानित करती है...वो भी एक कलाकार है उसकी भी शायद गरिमा होगी ...लेकिन वो इंटेलेक्चुअल आतंक कर रहा है....
लिंक ये रहा :
http://bharhaas.blogspot.com/2010/01/blog-post_7783.html
शाहरुख़ एक सफल अभिनेता है ...उसने देश के लिए क्या किया है अब तक...सिवा अभिनय करके अपने लिए पैसा कमाने का....पहला मौका मिलते ही उसने 'पाकिस्तान' का पक्ष लिया वो भी क्यूँ ...क्योंकि उनको अपनी फिल्म हिट करानी थी.....यह इंटेलेक्चुअल आतंकवाद है...
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