Tuesday, March 2, 2010

हमने परिवर्तन होते देखा है..

जब भी फेसबुक खोलकर बैठता हूं, तो उधर से पोक कर पूछा जाता है-क्या हाल है? जवाब होता है-ठीक है जनाब। अनजाने रिश्तों की डोर बंधती चली जाती है। आठवीं कक्षा में थे, तो दादा जी के निधन की खबर के लिए कॉल रिसीव करने के लिए सौ डेग पर स्थित एक दुकान जाना पड़ता था। बमुश्किल किसी प्रकार बातचीत होती थी। उस जमाने में घरों में काला मोटा सरकारी टेलीफोन हुआ करता था। कॉल रेट भी ज्यादा था। समय देखकर बातें होती थी। हाल कुछ ऐसा था कि फर्राटेदार जबान में पूरी बात कहकर रिसीवर रख देते थे। एक आज का दिन है, बटन दबाया कि दूर भोपाल या मद्रास में बैठा मित्र हलो कैसे हो, करता है। नहीं तो फेसबुक पर अमेरिका में बैठे नये दोस्त पोककर पूछते हैं-आप क्या करते हैं? इस क्रांति की हमारी पीढ़ी गवाह है। हमने परिवर्तन होते देखा है। परिवर्तन, जो कि धीरे-धीरे समय के साथ होता है। लेकिन क्या हमारी अगली पीढ़ी परिवर्तन का स्वाद चख पाएगी? वह तो झटपट बदलाव देख रही है। न मौसम का इंतजार और न किसी के रुख का, बस तुरंत पा जाओ। इतनी स्पीड हो गयी है कि संभले नहीं संभल रहा। जीमेल पर बज भी आ गया। बाथरूम गये या नहीं, उसे भी लिखकर बता सकते हैं। जिंदगी की इस तेज रफ्तार को कैसे संभाला जाये। इसके लिए क्या किया जाये, ये सोच-सोचकर भेजा खराब हो जाता है। किताबों की दुनिया में अब मन नहीं लगता। एक बेचैनी घुसी रहती है कि कैसे नेट पर ही पलभर में जानकारी हासिल कर लें। तुरंत लोकप्रिय होने का ख्वाब पलभर में सच हो जाता है। २० दोस्त तुरंत बन जाते हैं। दो मिनट का सुकून छीन गया है। जरा सा दर्शन अंदर लिये हुआ जीता रहता हूं कि इतनी दोस्ती, इतना संपर्क क्या कोई काम आयेगा? सवाल के जवाब ढूढ़े नहीं मिलते। मुझे तो कयामत के उस दिन का इंतजार है, जब आदमी पलभर में यहां से वहां की यात्रा कर लेगा। मुझे स्कूली दिनों में स्टार वार कार्यक्रम देखने का रोमांच आज तक याद है। उस समय वे सभी चीजें विस्मित करती थी। लेकिन आज खिलौने की माफिक लगती है। क्या मैं बड़ा हो गया हूं इसलिए, या वास्तव में हम उन चीजों के अभ्यस्त हो गये हैं, जो २० साल पहले तक ही बस कल्पना में थे। ये क्रांति सचमुच में क्रांति है या नयी समस्या का जन्म। मामला सोचनेवाला है।

3 comments:

Satish Saxena said...

जहाँ आप आज आश्चर्य चकित हैं, हम भी अपने समय में नियोन लाइट देख कर अचंभित थे और आने वाली पीढी शायद नए आश्चर्य देखेगी ! हाँ उस समय हम नहीं होंगे, परिवर्तन श्रष्टि का अपरिवर्तनीय नियम है यह तो भोगना ही है सुखद या दुखद ....

अच्छा लगा आपको पढ़ कर , मंगल कामना सहित

Arun sathi said...

बहुत सुन्दर रचना।

Udan Tashtari said...

परिवर्तन शाश्वत है..हर पीढ़ी देखेगी..हमने देखा कुछ और..वो देखेंगे कुछ और!

अच्छा विचार किया आपने.

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